परमात्मा तक पहुंचने के मार्ग

परमात्मा तक पहुंचने के विभिन्न मार्ग हैं

ध्यान

 ज्ञान 

सेवा 

भक्ति

हवन 

दान

कर्म

जप

तप

हठ

जिसने जिस प्रकार के परिवार में जन्म लिया है वह शुरुवात में उसी को परमात्मा को पाने का मार्ग जानता है। उसके पूर्व संस्कारों और कर्मों के आधार पर समय बीतने पर उसे अपना मार्ग नजर आता है और वह उसे चुनता है।

कुछ लोगों के लिए सभी मार्गों का थोड़ा थोड़ा योगदान रहता है। कुछ लोग डर और अज्ञान वश एक मार्ग चुन नहीं पाते।

हम सभी किसी न किसी समय इन मार्गों को अपनाते हैं किंतु एक मार्ग ऐसा है जो हमें ज्यादा सहज लगता है। भाई साहब जिस प्रकार अपने अनुभव से ज्ञान साझा करते हैं हम लोग ज्ञान मार्ग के राही हैं। भक्ति और प्रेम को साथ लेकर चलने का मार्ग है। आस्था और समर्पण के लिए भक्ति का होना आवश्यक है प्रेम का होना भक्ति के लिए आवश्यक है।

जैसा भाई साहब कहते हैं कि खुद को मिटाने से परमात्मा की प्राप्ति गुरु के मार्गदर्शन से मिलती है। भक्ति मार्ग में खुद को पूर्णता समर्पित कर प्रेम से भगवान को पाने की कोशिश रहती है । इसे दीन कहना एक तरह से सही भी है क्योंकि जिसके पास प्रभु नहीं वह दीन ही है । भक्त उनसे गिड़गिड़ाकर उनको पाना चाहता है। उन्हें अपने प्रेम और सवा से रिझाना चाहता है।

संकल्प से चलने वाले लोग कर्मयोगी हे भगवान उनको उनके कर्मों से साथ होते हैं। दोनों मार्ग भिन्न है। समर्पण में संकल्प का होना संभव नहीं क्योंकि वहां जो हरी इच्छा का भाव रहता है। जिस प्रकार एक जगह से दूसरी जगह जाने वाला अलग-अलग माध्यम से वहां पहुंच सकता है जैसे ट्रेन, बस, हवाई जहाज,नाव, पैदल।

चेन मैं सफ़र करने वाले को ट्रेन का समय प्लेटफार्म की जानकारी स्टेशन फोन से आएंगे कहां से रुकेगी यह सब जानकारी रहती है। हवाई जहाज में सफ़र कितने वाले को उस सफर के तौर तरीके की जानकारी रहती हैं

किंतु जिसने कभी हवाई जहाज में सफ़र नहीं किया,उसको वह जानकारी या अनुभव नहीं रहता। वह ट्रेन के अनुभव को हवाई यात्रा के अनुभव से कंपेयर नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार भक्ति मार्ग पर चलने वाले ध्यान मार्ग समझ नहीं पाते और ध्यान ज्ञान मार्ग पर चलने वाले को भक्ति मार्ग समझ नहीं आता। मेरी समझ से शरीर की शक्ति का इसमे कम प्रभाव है।आत्मिक शक्ति का अधिक महत्व है।

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