*पर्दे ही पर्दे में हरम तक *
यह नाद और प्रकाश का मार्ग जितना कठिन है उतना सरल भी ! सरल उन सच्चे दिल वाले जिज्ञासुओं के लिए है जिन पर उनके मालिक ने कृपा कर दी ! जिस शिष्य ने अपने को गुरु के हवाले कर दिया और उसके नाम बिक गए उनके मालिक धीरे धीरे पूर्ण मंजिल तक कब ला देते है पता ही नही चलता ! जरूरी नही है कि इस मार्ग के सभी साधको को विशेष अनुभव हो या उन्हें पता लगे कि वो लाइन में चल रहे है किंतु गुरु प्रेम और लगन से शेने शेने आत्मा के विकार पिंघलते हुए हम कब गुरुमय हो जाते है इसका अहसास ही नही होता ! मगर निरंतरता और समर्पण आवश्यक है ! कुछ साधक कुछ वर्षों तक इस राह में चल कर कहते हैं कि हमे कोई अनुभव नही हुआ या कुछ दिखा नही !, लेकिन ऐसा नही है ! गुरु महाराज की सोहबत या मोहब्बत में कब उनकी *खुशबू* हमारी रूह में आ जाती है जिसका अहसास भले ही हमे नही होता मगर surrounding को अवश्य होता है !
इसीलिये परम संत समर्थ सद्गुरु ठाकुर श्री राम सिंह जी महाराज ने फरमाया है कि *पर्दे ही पर्दे में हरम (परम लक्ष्य ) तक ले जाते है !*