पिताजी जब जिंदा थे उनका व्यक्तित्व को देखते तो ऐसा लगता था कि उनको भौतिक दुनिया से कोई लेना देना नही है सिर्फ अपने कर्म जो उनके लिए परमात्मा ने बनाये है उस अवसिह मे जीवित रह सम बनकर सबको एक नजर से देकहते थे और कोई भएफ भाव नही करते थे और कहते थे इस दुनिया मे जन्म लिया है तो स्वमं में ओर अन्य चाहे मॉनव चाहे जीव जंतु पेड़ या अन्य किसी मे भेद न करो स्वम् के लिए न जिकर उस गुरु रुपि ईशवर के लिए जियो ओर उसकी उपस्तिथि अपनी आत्मा के संग महसुस करो तो तुमको तुम्हारे अंदर जो आत्मा की आवाज आएगी अगर तू उस आवाज में लय होकर अपने शरीर को भूल अपने अंदर उस ईश्वर की अनुभूति करोगो ओर निष्काम निष्पक्ष ओर संमर्पित बिना किसी भेद भाव और इच्छाओं के बिना अपना जीवननुसजी शरण मे गुजरोगे तो तुम्हे अपने होने का अस्तित्व ही नही होगा और तुम शून्य में अपने को महसूस जारोगे तुम्हे ज्ञात हो जाएगा इस भौतिक दुनिया का कोई भी कण तुम्हारे साथ न जाएगा न ही शरीर ये शरीर भी राख में तब्दील हो उस आकाश में वायु के संग ब्रह्मांड में चला जायेगा और सुक्षम शरीर के संग ब्रह्मांड में घूमता रहेगा और अगले जन्म की तलाश में निकल उस घर मे जन्म ले एग जहाँ से उसे आध्यात्मिक आगे की तरक्की करनी है जन्म के बाद फिर सूक्ष्म शरीर स्थूल।के साथ जुड़ आध्यात्मिकता में लग जायेगा पर अब वो पिछले कर्मो के फल से प्राप्त शरीर व आत्मा में सुधार ला मुक्त होने के लिए कर्म करेगा और विकार रहित बन फकीरी जीवन मे जियेगा ओर किसी ऐसे व्यक्ति के संग जुड़ जाएगा जो उसे मुक्त होने की राह बता के आगे बढ़ा सके