बरसात की  पहली फुवार

बरसात की  पहली फुवार कुछ इस तरह से तन को भिगो के शीतल कर जाती है जैसे खेत में मुरझाई फसल फिर हरी हो जाती है 

उसी तरह गुरु की रहमत भी कुछ इसी तरह से बरसती है कब इंसान खुद संत बन जाए

ये उसकी गुरु के प्रति समर्पित भवन कहती है  

जानता हू इस मतलबी दुनिया में कोई किसी को निहाल नही करता है 

दुनिया में कुछ ही ऐसे रिश्ते होते है जो

न चाहते हुवे भी निहाल कर जाते है

वह है मां पिता का जो 

कुर्बानी से भरे होते है पुत्र कैसा भी हो उसे  सब कुछ दे कर  उसे अमीर कर देते है 

ठीक इसी तरह से गुरु का दर भी इनमे से एक होता है जहा गुरु शिष्य को सम बना देता है पर शिष्य इस क्षमता से परे होता है

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