भक्ति बिना न होई निबाहा, सतगुरु भेद न पायो।

तक मन में श्रद्धा, विश्वास और गुरु के प्रति प्रेम नहीं होगा, तब तक आत्मिक उन्नति और कल्याण संभव नहीं है। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च – ये सभी प्रतीक मात्र हैं, असली ईश्वर तो सर्वव्यापी हैं, जो कण-कण में व्याप्त हैं।

गुरु ही हमें उस दिव्य सत्य से जोड़ते हैं और आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं। बिना श्रद्धा और समर्पण के हम भटक सकते हैं, लेकिन सच्चे विश्वास के साथ हम ईश्वर को अपने हृदय में अनुभव कर सकते हैं।

“भक्ति बिना न होई निबाहा, सतगुरु भेद न पायो।”
अर्थात जब तक सच्ची भक्ति और गुरु की कृपा नहीं होती, तब तक जीवन का असली सार समझ में नहीं आता।

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