भगवान श्रीकृष्ण को ‘पूर्ण अवतार’ कहा जाता है क्योंकि वे 16 कलाओं से पूर्ण थे। ये 16 कलाएँ उनके व्यक्तित्व, गुणों और दिव्यता का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन कलाओं का आध्यात्मिक महत्व यह है कि वे मानव जीवन के संपूर्ण विकास और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग को दर्शाती हैं।
कृष्ण की 16 कलाएँ:
- धारणा – एकाग्रता और मन की स्थिरता।
- शक्ति – आंतरिक और बाहरी बल व ऊर्जा।
- वाक् सिद्धि – वाणी में सत्य और प्रभावशीलता।
- प्रकृति विजय – प्रकृति और तत्वों पर नियंत्रण।
- संगीत कला – संगीत का ज्ञान और उसकी साधना।
- कला कौशल – विविध कलाओं में निपुणता।
- माया – योगमाया के माध्यम से सृष्टि का संचालन।
- लीला – दिव्य क्रीड़ाएँ, जो धर्म और ज्ञान का प्रचार करती हैं।
- सम्पूर्ण ज्ञान – सभी शास्त्रों और विज्ञानों का ज्ञान।
- अहंकार रहितता – पूर्ण विनम्रता और अहंकार का अभाव।
- मुक्ति प्रदायक – दूसरों को मोक्ष देने की क्षमता।
- भक्ति प्रबलता – प्रेम और भक्ति में उच्चतम स्तर।
- दया और करुणा – सभी प्राणियों के प्रति करुणा।
- धैर्य – हर परिस्थिति में अडिग और शांत।
- सर्वव्यापकता – प्रत्येक जीव और तत्व में उपस्थित होना।
- सर्वसमर्थता – सभी प्रकार की शक्तियों का स्रोत।