मनुष्य भी एक सामाजिक प्राणी पशु जीव है जिसका लगभग सारा जीवन भय और लालच से नियंत्रित संचालित प्रेरित है चाहे धर्म का पालन हो या भौतिकता का अनुसरण हो या येन केन प्रकारेण जीवन व्यतीत करना।
लालच – भाग्य जागृत होगा धन मिलेगा अच्छा जीवन होगा नाम प्रतिष्ठा होगी मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा या मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी संसार की अत्यंत उत्कृष्ट सुख सुविधाएं हासिल होगी उच्च कोटि का जीवन व्यतीत होगा अत्यधिक धनाढ्य वर्ग में रहने को मिलेगा राजसी जीवन होगा।
भय – धन हानि हो जाएगी जो है वह भी बर्बाद हो जाएगा मेरे या अपने का जीवन संकट में पड़ जाएगा भुखमरी से सब बर्बाद हो जाएंगे सामाजिक प्रतिष्ठा धूल में मिल जाएगी कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे देव नाराज़ हो गए तो जीवन दुख कांटों से भर जाएगा और मरने के बाद भी नरक प्राप्ति होगी।
जहां जितना ज्यादा पाने का लालच हो या जहां जितना ज्यादा किसी भी प्रकार के नुकसान होने का भय हो वहां मानव अपने बूते से बाहर जाकर भी कुछ करने को तैयार हो जाता है और वे कर्म, मन से नहीं केवल भय और लालच से संचालित होते हैं और वे कर्म, कर्म विधान से फलित होते हैं।
इन सबसे ऊपर जब मानव अपनी जिम्मेदारी अपने कर्तव्य को किसी भी भय या लालच से ऊपर उठकर मन से करता है चाहे भक्ति हो चाहे किसी भी संबंध की सेवा, वे ही सत्कर्म है जो उसे ईश्वर के करीब ले जाते हैं। जैसे मां का बच्चे के प्रति कर्म जिम्मेदारी ईश्वर तुल्य कर्म से मिलता जुलता है।
भय या लालच से प्रभावित किसी भी कर्म से ईश्वर की प्राप्ति मेरे मतानुसार संभव नहीं है।
मेरे मन के चिंतन को व्यक्त किया अगर सही ना लगे तो मुझे माफ करना।
हे गुरुदेव मुझे दिशा ज्ञान देकर सही मार्ग पर चलायमान रखिए।
सादर नमन।