मनुष्य में मुख्य रूप से छह प्रकार के विकार माने गए हैं, जिन्हें षड् विकार या षड् रिपु (छह शत्रु) कहा जाता है। ये विकार मनुष्य को आध्यात्मिक उन्नति से दूर करते हैं और मानसिक अशांति का कारण बनते हैं। ये इस प्रकार हैं:
- काम (वासनाएँ)
अनियंत्रित इच्छाएँ और भोग-विलास की लालसा, जो मनुष्य को लोभ और असंतोष की ओर ले जाती है।
- क्रोध (गुस्सा)
इच्छाओं की पूर्ति न होने पर उत्पन्न होने वाला आक्रोश और हिंसा की भावना।
- लोभ (लालच)
अधिक पाने की इच्छा, चाहे धन, शक्ति, सम्मान या भौतिक सुख-सुविधाओं के रूप में हो।
- मोह (अज्ञानता)
असत्य को सत्य मानने की प्रवृत्ति, जिसमें व्यक्ति संबंधों, वस्तुओं और भावनाओं के प्रति अत्यधिक आसक्ति रखता है।
- मद (अहंकार)
अहंकार और घमंड, जो व्यक्ति को अपनी श्रेष्ठता का भ्रम देता है और विनम्रता को समाप्त करता है।
- मात्सर्य (ईर्ष्या)
दूसरों की सफलता, सुख, संपत्ति या प्रतिष्ठा को देखकर जलन और द्वेष की भावना।
इनके अलावा, कुछ अन्य मानसिक विकार भी मनुष्य में पाए जाते हैं, जैसे:
भय (डर): अनिश्चितता या असुरक्षा के कारण उत्पन्न होने वाला डर।
अविश्वास: दूसरों पर भरोसा न करना और शंका करना।
अविश्वासघात (धोखा देने की प्रवृत्ति): स्वार्थ के लिए दूसरों को हानि पहुँचाना।
इन विकारों पर नियंत्रण पाकर ही मनुष्य आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकता है।