मन और आत्मा के बीच का अंतर समझना आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मन माया में लिप्त होता है, क्योंकि यह संसारिक इच्छाओं, वासनाओं, और भौतिक सुखों की ओर आकर्षित होता है।
आत्मा ईश्वर में लिप्त रहती है, क्योंकि उसका स्वभाव शुद्ध, शाश्वत, और दिव्यता से युक्त होता है।
मन माया में लिप्त क्यों है?
- वासनाओं और इच्छाओं का केंद्र:
मन वासनाओं, इच्छाओं, और संसारिक सुखों की ओर आकर्षित होता है।
यह माया (भ्रम) के कारण भौतिक वस्तुओं में सुख की खोज करता है।
- अनित्य और असत्य को सत्य मानना:
मन माया के कारण असत्य (नश्वर वस्तुएँ) को सत्य (स्थायी सुख) मान लेता है।
यह भौतिक पदार्थों में स्थायी सुख खोजता है, जबकि वे अस्थिर और नश्वर हैं।
- पंच इंद्रियों का अधिपति:
मन पांचों इंद्रियों का राजा है और उनके द्वारा संसारिक भोगों में लिप्त रहता है।
इंद्रियों के भोग से मन में आसक्ति और बंधन उत्पन्न होते हैं।
- अहंकार और ममता:
मन ‘मैं’ और ‘मेरा’ के अहंकार में बंधा रहता है।
यह अहंकार ही माया का मूल कारण है, जो आत्मा के शुद्ध स्वरूप को ढँक देता है।
- अज्ञान (अविद्या):
मन अज्ञान (अविद्या) के कारण आत्मा के सत्य स्वरूप को नहीं पहचानता।
यह स्वयं को शरीर और भौतिक वस्तुओं से जोड़कर देखता है, जिससे बंधन उत्पन्न होते हैं।