मानव जीवन को विशेष इसलिए माना गया है क्योंकि यही वह माध्यम है, जिसके द्वारा आत्मा अपने उच्चतम लक्ष्य को प्राप्त कर सकती है। अन्य योनि (पशु, पक्षी आदि) में यह संभावना सीमित होती है, लेकिन मानव जीवन में ज्ञान, विवेक और आत्म-जागृति की शक्ति है।
उदाहरण:
एक लहर को जब तक अपने आप को “लहर” मानने का भ्रम है, तब तक वह समुद्र से अलग है। लेकिन जब वह अपनी वास्तविकता को पहचान लेती है कि वह स्वयं समुद्र का ही हिस्सा है, तो उसका यह भ्रम मिट जाता है। इसी तरह, जब व्यक्ति अपने “मैं” (अहम) को पहचानता है, तो वह ब्रह्म की दिव्यता को समझ पाता है।