कोई सदाचारी साधक सूक्ष्म ध्यान के द्वारा आंतरिक ब्रहमज्योती और ब्रह्म नाद (शब्द) को प्राप्त करता है, तब उसे आत्मज्ञान होता है साथ ही वह ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति करता है। यही मोक्ष कि अवस्था है, जिसमें सदा के लिए जीव और ब्रह्म का मिलन हो जाता है और साधक आवागमन या जन्म – मरण के चक्र से छूट जाता है। यह क्रिया जीते जी ही करनी होती है। जीवन काल में जिसे जीवन – मुक्ति मिल जाती है, उसे है मरने पर विदेह मुक्ति मिलती है।