राग और वैराग्य

एक में प्राण वायु प्रश्वास, दूसरे में शरीर की प्रयुक्त वायु निश्वास व सुशुम्ना इन दोनों श्वासों को बेलेंस।न्यूटरल का कार्य करने में प्रयुक्त होती है। मूल रूप से सुषुम्ना गुणहीन होती है, उसकी अपनी कोई विशेषता नहीं होती। वह एक तरह की शून्‍यता या खाली स्थान है। अगर शून्‍यता है तो उससे आप अपनी मर्जी से कोई भी चीज बना सकते हैं। सुषुम्ना में ऊर्जा का प्रवेश होते ही, आपमें वैराग्‍य आ जाता है। ‘राग’ का अर्थ होता है, रंग। ‘वैराग्य’ का अर्थ है, रंगहीन यानी आप पारदर्शी हो गए हैं।

जिस व्यक्ति  विशेष जो आध्यात्मिक साधना में लय होता है और साधना में लय रहता है और जिसने अपने इन विकारो  पर नियंत्रण कर लिया और संसार से मोह खत्म हो  उसमे क्षोभ (भूख), (प्यास), बुढापा, रोग, जन्म, मरण, भय, घमण्ड, राग, द्वेष, मोह, और चिन्ता, अरति यानी राग विराग आश्चर्य, अनिद्रा, खेद, शोक और प्यास ये दोष नहीं होते हैं।

वह व्यक्ति साधु सन्यासी महात्मा योगी संत की श्रेणी में होता है

 

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