राम सन्देश : जनवरी-फ़रवरी, 2012.
ईश्वर की दूरी और नज़दीकी
(ब्रह्मलीन परमसंत डॉ. करतारसिंह जी महाराज )
ओउम के मायने शास्त्रों में उस शक्ति से हैं जो चारों जगत – पिण्ड, ब्रह्माण्ड, पारब्रह्म और दयाल देश, की स्वामी है, जिसमें उस आदि शक्ति के तीनों गुण – पैदा करने वाला, पालन करने वाला, प्यार करने और आनन्द देने वाला, हैं. यह शब्द सब सिफ़ात का मजमां (गुणों का भण्डार ) है. जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति,और तुरीया हर हालत में मौज़ूद हैं. इस शब्द के अन्दर भी सभी शक्तियाँ मौज़ूद हैं. इसके उच्चारण करने का मतलब यही है कि उस शक्ति का होना हम अपने घट में महसूस करें, हमको ज्ञान हो और आहिस्ता-आहिस्ता उससे मिलकर एक हो जायें. यह परमात्मा में मिल जाने का महामंत्र है.
ऋषियों का कहना है कि ईश्वर सबसे परे है. इतना दूर जितना हम ख़्याल भी नहीं कर सकते. इतना महान जिसका हम अन्दाज़ा भी नहीं लगा सकते. इतना फ़ैला हुआ जो ख़्याल में भी नहीं आ सकता. उसके और हमारे बीच में इतना फ़ासला है जो ध्यान में भी नहीं आ सकता. उसकी इस महानता का, इस दूरी का, इस फ़ैलाव का ख़्याल करने से जीव घबरा जाता है. तमाम जगत, ब्रह्माण्ड, पारब्रह्म से परे वह है इसलिए दुनियाँ की सब चीज़ों को, सब ख़्वाहिशों और वासनाओं को, सब इन्द्री भोगों को छोड़कर उसका पाना अत्यंत कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव सा है.
लेकिन सन्तों ने दया करके उसको पाना बहुत ही सरल कर दिया है. वे कहते हैं कि वह सबसे परे है, यह ठीक है, लेकिन वह सबसे नज़दीक भी है. इतना समीप है जिसका तुमको ख़्याल भी नहीं हो सकता. वह बहुत सहल है. जितनी मेहनत तुमको दुनियाँ की चीज़ों को हासिल करने में लगती है, उससे भी कम मेहनत से वह हासिल हो जाता है, मगर शर्त यह है कि तुम्हें उससे प्यार हो. हमारी आत्मा में उससे प्यार क़ुदरती तौर पर है, मगर सोया हुआ है और दुनियाँ की और चीज़ों को पाने की कोशिश करने के कारण सच्चे रूप में ज़ाहिर नहीं हो रहा है. सन्तों की सेवा में जाकर उसको जगाओ.
जिस चीज़ को मन प्यार करता है उसको अपने पास ले आता है, खींच लेता है. जिस आदमी को हम प्यार करते हैं, चाहे वह जिस्मानियत के लिहाज़ से हज़ार मील की दूरी पर हो, लेकिन प्यार की वजह से वह हर समय दिल में मौज़ूद रहता है. जिससे मुहब्बत होती है उसका ध्यान करने में कोई तकलीफ़ नहीं होती, बल्कि आनन्द आता है. जिससे प्यार होता है उसके ऊपर कितनी ही बड़ी चीज़ क्यों न हो, कुर्बान करने में आनन्द आता है, दुःख नहीं होता.
इसलिए सबसे आसान रास्ता उस तक पहुँचने का यह है कि बजाय इसके कि यह ख़्याल करो कि वह दूर है, यकीन करो कि वह तुम्हारे नज़दीक से नज़दीक है. हर समय उसकी याद रखो, उसका ध्यान करो. सोचो, वह तुम्हारा हमेशा का साथी है और उसी के पास आकर तुम्हे आनन्द मिलेगा. दुनियाँ की जो चीज़े उसी ने तुमको दी हैं वो थोड़े दिन के लिए हैं. उन थोड़े दिनों रहने वाली चीज़ों के लिए अपने असली प्रीतम को मत भूलो. जो चीज़ें उसने दी हैं उनको अपना मत समझो. जब तक वे चीज़ें मौज़ूद हैं, और उसने दे रखी हैं, उनकी सेवा में लगे रहो और जब वह वापस माँगे, उसे ख़ुशी से वापस कर दो.
इस तरह अपने मन के अन्तर में उससे लौ लगाए रहो. अपनी वृत्ति को बाहर से हटाकर उसी ईश्वर में लगा दो. हर समय उसका ध्यान करो. सब दुनियांवी चीज़ों का जो ज़ाहिरा सहारा है उसको छोड़कर उसी मालिक का सहारा लो. उसी का असली सहारा है. सब चीज़ों को देने वाला वही है, लेकिन बाहरी रूप दूसरा है जो धोखा है. जितना तुम दिल से उसके समीप होते जाओगे, इतना लम्बा चौड़ा रास्ता मिनटों में तय होता जायेगा. वह हमेशा-हमेशा से तुम्हारे साथ था, लेकिन और जन्मों में तुम्हारे अख्तियार (वश) में नहीं था कि तुम इस ख़ुदी के परदे को हटाकर तुम उससे एक हो जाओ. लेकिन इस इन्सानी ज़िन्दगी में उसने ऐसा मौक़ा उसने तुम्हें दिया है कि तुम अपनी ख़ुदी को मिटाकर उससे एक हो जाओ.
यह कहना कि वह हमको इतने जन्मों में मिलेगा बेकार है. यह सब तुम्हारे प्रेम पर मुनस्सिर (निर्भर ) है, और तुम्हारे हाथों में है. अगर तुम सब कुछ, अपनी सब ख़्वाहिशात को, अपने और उसके बीच से हटा दो तो इसी जन्म में, बल्कि इसी वक्त, वह तुम्हें मिल सकता है. सब अपने प्रेम की गहराई पर निर्भर है. ऊपरी तौर पर हम अपना सब कुछ उसको देते हैं, लेकिन वास्तव में कुछ नहीं देते.