वक़्त की परछाइयाँ: जब आईना भी बूढ़ा हो गया

आज फिर उठा और मुह धो कर आईने में देखा तो आईना कहने लगा तुम को हो मैं तुम्हे जानता ही नही क्योकि आज से 60 वर्ष पूर्व जब तुममे समझ आई और हल्की हल्की दाड़ी मुछे उगकर आई चेहरे पर एक अजीब सी चमक।लिए मुखड़ा जो मैंने देखा था वह आज झुर्रियों सहित चश्मा ओर आंखों से कुछ अजीब नजर आ रहा था चेहरा कुछ ऐसे जान पड़ रहा था कि वो अपनी बरसो पुरानी पहचान मुझमे ढूंढ रहा था और सोच रहा था क्या मैं वही हु जिसे इस आईने ने मुझे जवा होते देखा था और क्या ये वही आईना है जो मुझे 60 वर्ष पहले यही रखा मिला था आईना पर जगह जगह धब्बे
पड़ गए थे उसके ऊपर किये लेप उतर गए था कहि कहि आईना जिसे मैं देख रहा था धूमिल हो गया था वक़्त के साथ उसका भी रूप बदल गया था तभी मैंने कहा क्या तुम वही हो जिसे मैंने जवानी में देखा था अरे तुम तो वक़्त के साथ तुम भी बूढ़े हो गए हो तुम्हारा रूप रंग सब बदल गया है वक़्त के साथ अब वो चमक भी खो गई तभी आईना बोला जब मैने तुम्हे देखा तब तुम भी मेरी तरह जवा थे वक़्त की ठोकर ओर कर्म और मेहनत ने तुम्हे आज तजुर्बा दे कर योग्य बना दिया है ओर जग में नाम रोशन कर तुमने अपनी पहचान बना कुछ कुछ नाम कमा या है अब तुमसे लोग इज्जत से पेश आते है और नाम के आगे जी लगा कर ईज्जत दे जाते है और मैं भी आईने से आइनजी नही बन पाया जो रुतबा उस समय था उसे खो चुका हूं कबाड बन एक कोने में पड़ा हु न जाने कैसे तुम्हारी नजर मुझ पर पड़ गई और आज कुछ इज्जत मिल गई और अब मैं घर के एक कोने में पड़ा पड़ा बेकार हो गया हूं जो कीमत थी उसे भी खो दिया पर तुम्हारे चेहरे पर वक़्त की मार ओर तजुर्बे के निशान झुर्रियों के रूप में नजर आ रहे है इसलिए मैं बेकार ओर तुम तजुर्बेकार नजर आरहे हो माफ करना मुझे जो तुमने मुझे संभाल कर रखा और आज मुलाकात में दोनों का अंतर मुझे बता दिया मैं खुश हूं तुम आज भी एक्टिव हो और मैं बेकार पड़ा मूल्यहीन हो स्टोर में पड़ा बेकार की जिंदगी गुजार रहा हु

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