वास्तव में, आध्यात्मिकता केवल बाहरी आडंबरों या मूर्तिपूजा तक सीमित नहीं हो सकती। जब तक मानव अपने भीतर मानवता को नहीं जागृत करता, तब तक सच्चे आध्यात्मिक मार्ग की ओर बढ़ना कठिन है।
द्वैत और अद्वैत की भ्रांतियों से ऊपर उठकर यदि कोई सही मार्गदर्शक मिले, जो आत्मा और परमात्मा के एकत्व का बोध करा सके, तो व्यक्ति न केवल सत्य को जान सकता है, बल्कि ईश्वर का साक्षात्कार भी कर सकता है। सच्ची आध्यात्मिकता बाहरी कर्मकांडों से अधिक, आंतरिक जागरूकता, प्रेम, करुणा और निष्काम सेवा में निहित होती है।
मेरा विचार इसी ओर संकेत करता है कि केवल मूर्तिवाद, परंपरागत अनुष्ठान या बाहरी भक्ति से ही मोक्ष संभव नहीं है, बल्कि आत्मबोध और सच्चे गुरु के निर्देशन में ही वास्तविक कल्याण संभव है।जिसके लिए स्वम् का पूर्ण होना ओर आध्यात्मिकता का ज्ञान होना व भक्ति में परिपकव होना जरूरी है