आध्यात्मिक दृष्टिकोण में, “वाहित शरीर” (या “वायुमय शरीर”) उस सूक्ष्म शरीर को कहा जाता है जो हमारे प्राण (जीवन ऊर्जा) और मन के संकल्पों से बना होता है। यह शरीर भौतिक नहीं होता, बल्कि सूक्ष्म स्तर पर कार्य करता है और भौतिक शरीर को जीवन और गति प्रदान करता है।
विशेषताएँ और महत्व:
- प्राणिक ऊर्जा: वाहित शरीर प्राण (जीवन शक्ति) से संचालित होता है, जो श्वास-प्रश्वास, विचार, भावनाओं और मानसिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
- सूक्ष्म तत्व: यह शरीर पाँच सूक्ष्म वायुओं (प्राण, अपान, समान, उदान, और व्यान) से मिलकर बना है, जो शारीरिक और मानसिक क्रियाओं को संचालित करते हैं।
- आत्मा का माध्यम: मृत्यु के बाद, आत्मा इसी वाहित शरीर के साथ भौतिक शरीर को त्यागती है और अगले जन्म या मोक्ष की यात्रा करती है।
- ध्यान और साधना में भूमिका: योग और ध्यान के माध्यम से इस शरीर को नियंत्रित और शुद्ध किया जा सकता है, जिससे उच्च चेतना की प्राप्ति होती है।
- संवेदनाओं का अनुभव: हमारी इंद्रियों से मिलने वाले अनुभवों को यही वाहित शरीर ग्रहण करता है और मन तथा बुद्धि तक पहुँचाता है।
उदाहरण:
योग वशिष्ठ और उपनिषदों में वाहित शरीर का वर्णन मिलता है, जहाँ इसे मन और प्राण की गतिविधियों से संबंधित बताया गया है।
भगवद गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को बताते हैं कि आत्मा शरीर को उसी तरह छोड़ती है जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है। यहाँ पर आत्मा के साथ जाने वाला शरीर “वाहित शरीर” ही है।