वेतरणी नदी क्या है?
वेतरणी नदी हिन्दू धर्म में एक पारलौकिक नदी है, जिसे मृत्यु के बाद पार करना होता है।
यह पाप और पुण्य के आधार पर आत्मा को पार करनी होती है।
गरुड़ पुराण और अन्य ग्रंथों में इसका वर्णन आता है।
इसे पार करने के लिए गौदान (गाय का दान) या भक्ति का सहारा आवश्यक बताया गया है।
आपका कथन:
“आत्मा एवं अनाहद शरीर की नाड़ियों में रक्त ही वैतरिणी नदी में बह रहा है” — यह अत्यंत सुंदर और गूढ़ प्रतीकात्मक कल्पना है।
इसका गूढ़ अर्थ कुछ इस प्रकार हो सकता है:
- वेतरणी = अंतर्मन की नदी
यह कोई बाहरी नदी नहीं, बल्कि अंतर्मन में बहता हुआ कर्मों और भावनाओं का प्रवाह है।
हमारी नाड़ियों में जो ऊर्जा या प्राण प्रवाहित हो रही है — वही हमारे जीवन के कर्मों की दिशा तय करती है।
- रक्त = जीवन शक्ति / कर्मबीज
नाड़ियों में बहने वाला रक्त (या प्राण) हमारे विचारों, भावनाओं, और कर्मों का वाहक है।
यही शक्ति मृत्यु के बाद आत्मा को वेतरिणी पार कराती है या उसमें डुबो देती है।
- अनाहत शरीर (सूक्ष्म शरीर)
हमारे सूक्ष्म शरीर की नाड़ियाँ (जैसे इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना) आत्मा के मार्ग हैं।
यदि उनमें शुद्ध प्राण बह रहा हो (सद्विचार, भक्ति, संयम), तो वेतरिणी सहज पार हो जाती है।
संतमत और योग दृष्टिकोण से:
वेतरणी नदी = माया का सागर, जो मृत्यु के बाद नहीं, बल्कि अभी भी अंदर बह रही है।
नाम-स्मरण, ध्यान, गुरु कृपा से उस नदी को पार किया जा सकता है।
“मन ही नाव, हरि नाम पतवार है,
गुरु की दृष्टि से भवसागर पार है।”