भगवद गीता: भगवान कृष्ण ने कहा है, “अशरीरं शरीरेषु” – आत्मा शरीर में रहते हुए भी उससे परे है।
कठोपनिषद: “अणोरणीयान् महतो महीयान्” – आत्मा शरीर से सूक्ष्म और महान है, लेकिन शरीर के माध्यम से ही इसका अनुभव किया जा सकता है।
वेदांत: स्थूल शरीर ‘अविद्या’ (अज्ञान) के कारण आत्मा के साथ तादात्म्य करता है, लेकिन इसका सही उपयोग आत्मज्ञान का साधन है।