यह मेरा मानना है के सभी गुरु दिन में एक बार अपने हर शिष्य के मन में झांक के देखते है के वह कहां तक पहुंचा है उसका पात्र कितना पक्का हुआ है । गुरु इस इंतजार में होते है के शिष्य का पात्र मजबूत हो इतना मजबूत हो के गुरु अपने ज्ञान से जब उसे भरे तो वह ज्ञान कहीं बह ना जाए । जिस दिन पात्र पक्का हुआ गुरु अपना ज्ञान शिष्य में पूरा भर उसे पूर्ण कर देते है ।
यहां सवाल यह उठता है के शिष्य अपना पात्र कैसे मजबूत करे?
शिष्य यह कर सकता है गुरु भक्ति, प्रेम, समर्पण, गुरु पे अटूट विश्वास जो गुरु स्वयं भी ना हिला सकें इन्ही सब से पात्र पक्का हो सकता है ।
हम अपना पात्र पक्का कर सके और गुरु चरणों में खुद को न्योछावर कर सकें ऐसी ही प्रार्थना करते है ।