शिष्य की ग़लतियाँ

हम शिष्य यूँ तो दिन भर में सैकड़ों ग़लतियाँ करते हैं पर कुछ ग़लतियाँ ऐसी होती है जो हमको गुरु की नज़रों में गिरा देती है ।

सबसे बड़ी गलती है गुरु का अपमान । गुरु का अपना करने वाला व्यक्ति शिष्यता से ही गिर जाता है वह शिष्य कहलाने के काबिल ही नहीं है जो गुरु का अपमान कर बैठे  गुरु आश्रम में चोरी करने वाला घोर पाप का भोगी बनता है क्योंकि वह उस जगह चोरी करता है जहां स्वयं ईश्वर विराजमान होते हैं और वह सब ईश्वर के कार्यों में लगाने का समान होता है । 

गुरुदेव कहते हैं के शिष्य एक बहुत बड़ी गलती यह भी करता है के वह अपनी बुद्धि से गुरु को प्रभावित करने की कोशिश करता है । वह सोचता है जैसे सारी दुनिया को वह अपने झूठ से प्रभावित कर सकता है वैसे ही वह गुरु को प्रभावित कर लेगा । यह एकदम ग़लत सोच है और यह शिष्य को गुरु की नज़रों में बहुत गिरा देती है । हालाकि गुरु सामने से शिष्य को कुछ नहीं कहते बल्कि उसके झूठ में ऐसा दिखाते हैं जैसे वह उससे प्रभावित हो गये परंतु गुरु तो स्वयं शिष्य के मन में बैठ कर देख लेते हैं के मन के अंदर की क्या सच्चाई है और वह अंदर से दुखी होके भी सामने व्यक्त नहीं करते पर मन ही मन शिष्य से थोड़ा सा कट जाते हैं । 

एक और गलती जो शिष्य करते हैं वह है गुरु को यह बताने कि कोशिश के शिष्य गुरु के लिए क्या कर रहा है । शिष्य सोचता है के गुरु को सब बतायें के उन्होंने गुरु के लिए क्या क्या किया पर वह यह भूल हाता है के अगर वह यह सोच रहा है के शिष्य ख़ुद कुछ कर रहा है तो वह अभी भी भ्रम में है और पूर्ण शिष्य नहीं बना है ।

कुछ शिष्य गुरु को बताने की कोशिश करते हैं के वह कितने सच्चे शिष्य है । वह गुरु को कहते हैं के मैं आपका पक्का शिष्य हूँ आपका ही मन में विचार करता हूँ और सब आपका ही मान के करता हूँ  । चाहे वह शिष्य यह सब करता हो या सिर्फ़ कह रहा हो पर यह बात गुरु की नज़रों में शिष्य को छोटा कर देती है । अगर तो शिष्य वह जो सब कह रहा है नहीं करता तो वह गुरु को ही झूठ बोल रहा है जो सव्यं शिष्य के अंदर बैठे हैं और सब सच जानते हैं । 

शिष्य की शिष्यता को सिर्फ़ और सिर्फ़ गुरु ही आंक सकते हैं और शिष्य को ख़ुद से अपनी तारीफ़ गुरु के आगे नहीं करनी चाहिए ।

अगर वह सब कुछ जो कह रहा है करता भी हो तब भी अगर शिष्य कहता है के मैं कर रहा हूँ तो वह फिर उस भ्रम में है के वह कर रहा है गुरु नहीं करवा रहे ।

यह सब गुरुदेव के मन के भाव है जो मैंने सुने थे और अपने शब्दों में व्यक्त किए हैं अगर किसी को यह बुरे लगे हैं तो माफ़ी चाहता हूँ ।

गुरुदेव से यही प्रार्थना है के हम यह विकारों को अपने अंदर से ख़त्म कर एक पूर्ण शिष्य बन सके और आपके ह्रदय में अपनी जगह बना सकें ऐसी ही प्रार्थना करते हैं ।।

सादर नमन।।

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