शिष्य के कर्तव्य
- श्रद्धा और समर्पण
शिष्य को गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखना चाहिए। गुरु की शिक्षाओं को स्वीकार करना और उनका पालन करना उसका प्राथमिक कर्तव्य है।
- सत्संग में नियमितता
शिष्य को सत्संग में नियमित रूप से भाग लेना चाहिए और अपने मन को पवित्र रखने का प्रयास करना चाहिए।
- गुरु की आज्ञा का पालन
गुरु की आज्ञा को श्रद्धा और निष्ठा के साथ पालन करना शिष्य का कर्तव्य है।
- साधना और आत्म-अनुशासन
शिष्य को नियमित साधना (ध्यान, प्रार्थना, भजन) करनी चाहिए और आत्म-अनुशासन में रहना चाहिए।
- अहंकार का त्याग
शिष्य को अहंकार, ईर्ष्या, और अन्य नकारात्मक भावनाओं का त्याग करना चाहिए और विनम्रता अपनानी चाहिए।
- प्रश्न पूछना और सीखना
शिष्य को गुरु से अपनी शंकाओं को दूर करने के लिए विनम्रतापूर्वक प्रश्न पूछने चाहिए और नई चीजें सीखने के लिए तत्पर रहना चाहिए।
- धैर्य और समर्पण बनाए रखना
शिष्य को अपनी आध्यात्मिक यात्रा में धैर्य रखना चाहिए। प्रगति में समय लग सकता है, लेकिन विश्वास और समर्पण बनाए रखना आवश्यक है।