संत की जन्म और पुण्य तिथि: स्मृति, सत्संग, और आध्यात्मिक श्रद्धांजलि का आयोजन

किसी भी सम्प्रदाय के कोई भी उच्च कोटि के संत की पुण्य तिथि या जनम तिथि पर होने वाले कार्यक्रम पर एक विशेष तरह की आध्यात्मिक तौर पर श्रद्धांजलि या खुशी को मनाने का दिन होता है ये साल में एक ही बार ऐसा अवसर आता हैं। इस दिन को आध्यात्मिक संत की स्मृतिया जन्म तिथि पर विभिन्न तरह के आध्यात्मिक सत्संग जिसमे पूजा ध्यान समाधि व प्रवचन के माध्यम से मनाया जाता है। चुकी पिताजी परमसंत डॉक्टर चंद्र गुप्ता जी का जन्म 12 फरवरी 1916 को हुवा ये दिन जन्म दिन के रूप में तथा 17 अगस्त 1991 को अपना शरीर त्याग कर परमात्मा में लय होँगेये थेये दिन पूण्य तिथि के रूप मर में मनाया जाता है चुकी पिताजी अनाहद व अजपा जाप दोनो पर समान अधिकार रखते थे और दोनों उनके पास थी और वो स्वम् भी संत की उच्च श्रेणी में थे उनकेपास आने वाले व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार ही अपनाते थे और पात्र होता तो उसे अपने पास आकर ध्यान और सत्संग में बैठने की इजाजत दे देते थे पिताजी बहुत ही नेक दिल इंससन थे इंसानियत उनके चेहरे से टपकती थी और उनके पास आने वाले व्यक्ति को एक ही नजर में पहचान लेते थे पिताजी के आध्यात्मिक गुरु महात्मा राधा मोहन लाल जी आधोलिया थे जो कि महात्मा रघुवर दयाल जी आधोलिया के पुत्र थे किसी भी संत की जन्म व पुण्य तिथि पर निम्न तरह से भंडारा आयोजित किया जाता है जिसमे। प्रार्थना सभा या सत्संग का आयोजन उनकीजन्म की खुशी या स्मृति में एक संत के सम्मान होता है उसी के अनुसार एक प्रार्थना सभा आयोजित की जाती है, जिसमें भजन, कीर्तन, ध्यान और धार्मिक व संत के जीवनी के बारे में प्रवचन होते हैं। इस दिन संत की जन्म या पुण्य तिथि के अवसर पर उनके परिवार के सदस्यों या शिष्यो के द्वारा घरपर जन्म या उनकी स्मृति में उनके लिए बनाये आश्रम या पूजा घर पर एक विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है जिसमे सभी सत्संगी व परिवार के सदस्य भाग लेते है और संत के द्वारा मनोनीत पुत्र या शिष्य इस आयोजन का संचालन करते है इस समय पिताजी कीजन्म और पुण्य तिथि की स्मृति में तीन स्थानों पर सत्संग का आयोजन होता है एक सी 47 सेठी कॉलोनी जयपुर दूसरा सोहम ध्यान योग केंद्र श्यामपुर बस्सी जयपुर या डी 346 मालवीय नगर जयपुर ओर तीसरा स्पृतुळ सत्संग फरीदाबाद हम जानते है कि किसी भी संत कीजन्म या पुण्य तिथि पर उनके चित्र या मूर्ति के सामने रख कर उनको याद कर उनकी स्मृति में विशेष पूजा की जाती है, जिसमें उनके चित्र पर , फूल चढ़ाना, ध्यांन करना उनके दिए उपदेशो को स्मरण कर उन पर अमल कर अग्रसर होने और सत्संग के अंत मे जो लोग इस आयोजन में शामिल होते है उनको प्रसाद वितरण या प्रसाद को वहींपर बैठा कर खिलाना होता है।इसके अलावा भंडारा काआयोजन सत्संग के मुखिया के द्वारा किया जाता है हम।जानते है कि किसी भी संत के जन्म दिन या पुण्य तिथि के अवसर पर ही भंडारा आयोजित किया जा ता है, जिसमें सभी उपस्तिथ सत्संगियों को आदर सम्मान से ध्यान व प्रवचन किया जाते है। ओर संत के द्वारा दिये प्रवचन या उनके द्वारा दिये उपदेश या संत के द्वारा लिखित उपदेश या उनके वचनों या श्लोकों, या उनके उपदेशों का वाचन और चर्चा आयोजित की जाती है।जिसमे विस्तृत रूप से आध्यात्मिक ध्यान साधना का वर्णन होता है इस दिन समारोह में जोमकी उनकी याद में आयोजित किया गया है में
।उनका स्मरण किया जाता है और संत के जीवन और उनके कार्यों को याद किया जाता है जिसमें उनके अनुयायी और भक्त उनके योगदान को साझा करते हैं। पुण्य तिथि या जन्म तिथि के अवसर के दौरान
ध्यान और साधना कुछ स्थानों पर ध्यान और साधना सत्र भी आयोजित किए जाते हैं, जिसमें संत के अनुयायी उनकी शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए आत्म-चिंतन करते हैं।

ये आयोजन संत की शिक्षाओं को पुनर्जीवित करने और समाज में उनकी विचारधारा का प्रसार करने के लिए भी किये जा सकते है जिससे उनके विचारों को अन्य लोग भी जान कर उनके बताए मार्ग पर चल सके
पवन कुमार गुप्ता 15 अगस्त 2024

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