समाधि: आत्म-साक्षात्कार और अनंत आनंद की परम अवस्था

ध्यान समाधि की पराकाष्ठा तब आती है जब साधक पूरी तरह से आत्म-विस्मृति (self-forgetfulness) की अवस्था में पहुँच जाता है, जहाँ मन, बुद्धि और अहंकार विलीन हो जाते हैं और केवल शुद्ध चैतन्य (pure consciousness) शेष रह जाता है।

समाधि कब आती है?

  1. मन की एकाग्रता पूर्ण रूप से स्थिर होने पर – जब मन भूत, भविष्य और बाहरी विकारों से मुक्त होकर केवल एक ही विषय या ब्रह्म-तत्त्व पर स्थिर हो जाता है।
  2. अहंकार का लय हो जाने पर – जब “मैं” और “मेरा” का भाव समाप्त हो जाता है और केवल “साक्षी भाव” शेष रह जाता है।
  3. अनवरत अभ्यास और वैराग्य से – पतंजलि योगसूत्र के अनुसार “अभ्यास” (निरंतर ध्यान में रहने का प्रयास) और “वैराग्य” (सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होने की अवस्था) समाधि की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं।
  4. इन्द्रियों का संपूर्ण नियंत्रण होने पर – जब साधक बाहरी जगत की उत्तेजनाओं से निर्लिप्त होकर अंतर्मुखी हो जाता है।

समाधि क्यों आती है?

  1. सच्चे आत्म-तत्त्व का अनुभव करने के लिए – समाधि वह अवस्था है जिसमें आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप को जानती है।
  2. अज्ञान (अविद्या) से मुक्त होने के लिए – यह मोक्ष की ओर बढ़ने का मार्ग है, जहाँ साधक जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त हो जाता है।
  3. परम शांति और आनंद प्राप्त करने के लिए – समाधि में मनुष्य शाश्वत शांति और अनंत आनंद का अनुभव करता है, जिसे “सच्चिदानंद” कहा जाता है।
  4. परमात्मा से एकत्व स्थापित करने के लिए – जब साधक अपनी आत्मा और परमात्मा में कोई भेद नहीं देखता, तब वह अद्वैत की अनुभूति करता है।

समाधि के स्तर

  1. सविकल्प समाधि – इसमें साधक को किसी वस्तु, मंत्र, या विचार पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होती है।
  2. निर्विकल्प समाधि – जब ध्यान का कोई विषय नहीं रहता और केवल शुद्ध चैतन्य की अनुभूति होती है।
  3. सहज समाधि – जब समाधि की अवस्था साधक के जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बन जाती है, तब वह पूर्ण आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर लेता है।

निष्कर्ष

समाधि की पराकाष्ठा तभी आती है जब साधक निरंतर अभ्यास और वैराग्य द्वारा अपने चित्त को पूर्ण रूप से शुद्ध कर लेता है। यह अवस्था मनुष्य के आध्यात्मिक उत्थान का अंतिम लक्ष्य होती है, जहाँ केवल शुद्ध चेतना और अनंत आनंद शेष रहता है।

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