पिताजी साहब जब गुरु भगवान राधामोहन लाल जी के शिष्य बन उसी दिन उन्होंने अपनी पूर्ण कृपा पिताजी की आत्मा के साथ ले कर उन्हें एक योगी बना दिया उनके दिल।की आवाज अनाहद उसी समय गूंजने लगी और हर वक़्त हर कार्य करते उनके दिल मे गुरु भगवान का स्मरण होता रहता था आफिस में कार्य करते हुवे भी उनके हृदय अनाहद से गूंजता रहता और कार्य करते करते भी गुरु का नाम दिल मे जपता रहता था कभी किसी कारण वश भूल जाते तो उसी वक़्त उन्हें याद कर उनकी याद में डूब जाते थे सोते जागते उनके हृदय में गुरु नाम का जप चलता रहता था उनका जीवन उनकी याद में ही लय रहता था रात को जब भी आंख खुल जाती तो गुरु नाम हृदय में चलने लगता था वो कहते थे जब कोई साधक हर समय अपने कार्यों के दौरान अपने गुरु रूपी इष्ट में लय रहता है, तो वह सहज समाधि या सहज ध्यान की अवस्था में होता है। यह एक उच्च आध्यात्मिक स्थिति होती है जिसमें साधक की चित्तवृत्तियाँ अपने इष्ट में ही स्थिर रहती हैं, भले ही वह बाह्य रूप से सांसारिक कार्यों में संलग्न हो।
यह अवस्था सहज योग, स्मृति सतत ध्यान, या सहज आत्मानुभूति के रूप में जानी जाती है। इसमें –
- अखंड भक्ति (अनन्य भक्ति) – साधक के हृदय में गुरु या इष्टदेव की अखंड उपस्थिति बनी रहती है।
- निर्मल चित्त – मन स्थिर और शांत रहता है, बाहरी परिस्थितियाँ अधिक प्रभावित नहीं करतीं।
- कर्तापन का भाव नहीं – साधक सभी कार्यों को ईश्वरार्पण समझकर करता है, जिससे अहंकार नष्ट होता है।
- जीवन-मुक्ति की अवस्था – यह जीते-जी मुक्त होने की स्थिति है, जिसे “सहज अवस्था” भी कहा जाता है।
अंततः, यह ज्ञान और भक्ति का अद्वैत रूप है, जहाँ साधक और साध्य (गुरु या इष्ट) में कोई भेद नहीं रहता। इसे ही सहज समाधि, भक्तियोग का चरम, और आत्मसाक्षात्कार की स्थिति कहा जाता है।