परा –वाणी
लेखक समर्थ सदगुरू महात्मा श्री रामचन्द्र जी महाराज
( श्री लालाजी महाराज )
(समर्थ सद्गुरु महात्मा श्री रामचंद्र जी महाराज द्वारा उर्दु में लिखित आध्यात्मिक लेखों का हिन्दी अनुवाद)
सुख की विभिन्न अवस्थाएँ
11 -11- 19 से आगे। (((( भाग 40 ))))
(1) दयाल देश :– मुकाम रहमानी ( ईश्वरीय ) या तब्का ( अवस्था ) रूहानी।
(2) काल देश :— काल की सल्तनत या लतीफ ( सूक्ष्म ) माया का स्थान।
(3) माया देश :—- माया की अमलदारी ( हकूमत ) , स्थूल का मुकाम।
दयाल देश बिल्कुल मुकाम रूहानी है । यहां रूह माया की जंजीर से कतई आजाद है और अपनी हैसियत में सतत है इससे जिंदगी आती है वही जिंदगी का असली जोहर है । इसी में सब कुछ है। अगर वह न हो तो कुछ नहीं हो सकता । इसी में सारी ताकते हैं और वही कुल रचना का केंद्र है और सबसे ऊंचा है ।
दूसरा देश या मुकाम जो काल का स्थान बताया गया है । वह असल मेंब्रह्मांडी मन कहलाता है। यह दरम्यानी है , रूह के नीचे है या यूं समझ लो कि दूसरा दर्जा है ।तीसरा जड़ पदार्थ का स्थान है जो माया कहलाता है । यह सब से निम्न कोटि का है बाहरी मुकाम है और तमाम इंद्रियों का ताल्लुक इसी से है । इसकी बिगड़ी हुई अवस्था का सुधार बहुत जरूरी है ।
(1) तब्का रूहानी, (2) तब्का रूहानी व माद्दी (3) तब्का माद्दी व रूहानी । पहला तब का आनंद व सुरूर का मुकाम है यहां रूह पाक व साफ की हालत में है और किसी किस्म की गंदगी से आजाद है । यहां सिर्फ रोशनी जाती है । यहां ना किसी तरह की वासना है ना ख्वाहिश और न तमन्नाओं की गणना है , असली सुख की अलामत है । यह खालिस प्रेम और मोहब्बत वगैरह है । इसको संतों ने रूहों का भंडार , चैतन्य , निर्मल का भंडार और प्रकाश वगैरह का खजाना करार दिया है ।
दूसरी अवस्था आत्मिक नूर और स्थूलता की मिलीजुली अवस्था है । निर्मल चेतन और लतीफ माया की मिलौनी का मुकाम है । जहाँ रूह का कॉल यानी ब्रह्मांड मन के साथ ताल्लुक पैदा हुआ है । हालांकि रूह को यहां महत्व हासिल है मगर फिर भी वह लतीफ माद्दा से मिली हुई है इसलिए यह सूक्ष्म वासना का स्थान है ।