स्टूडेंट को प्रथम स्थान पाना है तो संसार के सभी मनोरंजन और व्यर्थ के क्रियाकलापों से कटकर विद्या अध्ययन में लगना पड़ता है किसी पहलवान को या जिम्नास्ट को उच्चतम स्थिति पाने के लिए कई सालों तक केवल एक ही उद्देश्य के लिए दिन के 8 10 घंटे पूरे शरीर और मन से लगाने पड़ते हैं।
अध्यात्म के शिखर पर पहुंचना केवल कुछ बातों या कुछ समय दे कर पाने का ख्याल करना शायद दिवास्वप्न के समान है। यहां उससे भी ज्यादा कठिन और सतर्क रहकर लगना पड़ता है इसीलिए यहां निर्लिप्त शब्द का ज्यादा इस्तेमाल हुआ है। संसार से निर्लिप्त होकर कार्य करना संसार के सभी जरूरी कार्य करते वक्त केवल चिंतन मनन हो और कार्य नहीं कर रहे हो तब केवल उनका ध्यान और व्यर्थ के क्रियाकलापों से अपने आप को समेटना होता है जो अधिकांशतः संभव नहीं केवल विशेष मनोबल के स्वामी इसे हासिल करते हैं। संसार में करोड़ों में कोई एक होता है जिसे गुरुत्व सीधे-सीधे वह चीज प्रदान करते हैं वरना जो गॉड गिफ्ट अंदर मिला है उसे भी उजागर करने के लिए नियत साधना करनी पड़ती है।
आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्ति के बारे में भाव उन लोगों के लिए है जो गुरु तत्व की शरण में है और उन्हें ही पाने का ख्वाब देखते हैं।