गुरुदेव कहते हैं के हर गुरु को तलाश होती है लायक़ शिष्य की कोई ऐसा जो ख़ुद को फ़ना कर दे मिटा दे और बस गुरु का हो जाये । जो गुरु कहे वह करे ना के जो गुरु करे वह करे । ऐसा शिष्य यदि कोई गुरु को मिल जाता है और वह गुरु की सारी परीक्षाओं में खरा उतरता है तब गुरु उसको उस जायदाद का मलिक बना देते है के जिसके बाद शिष्य स्वयं ब्रह्मांड ख़ुद में समाहित कर लेता है । ऐसे शिष्य को पाके गुरु भी स्वयं को भाग्यशाली समझते है और गौरवांगित महसूस करते हैं
इसी तरह एक काबिल शिष्य को किसी ऐसे गुरु की तलाश होती है जो पूर्ण हो जो ईश्वर तुल्य हो जिसने स्वयं ईश्वर का साक्षातकार किया हो । ऐसा गुरु मिलना शिष्य के लिए परम सौभाग्य है । पर बहुत से गुरु ऐसे होते है जो ख़ुद तो पहुँचे होते है पर शिष्य को पहुँचाने की क्षमता नहीं रखते या फिर लालच या कंजूसी वश शिष्य को कुछ नहीं देते । असली गुरु तो वह होते हैं जो अपनी सारी साधना तप शिष्य पे न्योछावर करने तो तैयार बैठे रहते हैं और यदि ऐसा गुरु मिल जाये तो शिष्य को 1 पल भी रुकना नहीं चाहिए बस समर्पण कर देना चाहिए ।
यहाँ हमको ऐसे ही गुरु मिले हैं जो शिष्य पे सब कुछ लुटाने को तैयार है और अब यह हमारी कमी है अगर हम ख़ुद को न्योछावर ना कर सकें तो ।
हम ख़ुद को गुरु चरणों में फ़ना कर दें ऐसा मन में इच्छा हो ऐसी ही प्रार्थना करता हूँ ।।
सादर नमन ।।