उन्हें किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थिति से लगाव या घृणा नहीं होती।
वे सुख-दुख में समान रहते हैं और बाहरी परिस्थितियों से अप्रभावित होते हैं।
उनकी वाणी और कर्म में किसी प्रकार का पक्षपात या आसक्ति नहीं दिखती।
- सम्यक संन्यासी (सही ढंग से संन्यास लेने वाला):
उन्होंने मन, वचन और कर्म से सांसारिक इच्छाओं का त्याग किया होता है।
उनका जीवन सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय के सिद्धांतों पर आधारित होता है।
वे किसी पहचान, प्रतिष्ठा या अनुयायियों की लालसा नहीं रखते।
- स्थिरप्रज्ञ (जिसकी बुद्धि स्थिर है):
वे सुख और दुख में समान रहते हैं, प्रशंसा और निंदा में विचलित नहीं होते।
उनके निर्णय और कार्य विवेकपूर्ण और निष्पक्ष होते हैं, न कि भावनाओं के अधीन।
वे आत्मज्ञान में स्थिर होते हैं और संसार के परिवर्तनशील स्वभाव को समझते हैं।
इन गुणों को देखकर किसी के बारे में निष्कर्ष निकालने से पहले उनके व्यवहार और जीवनशैली का गहराई से अवलोकन करना आवश्यक है,