स्वार्थ रहित होना और निष्काम कर्म करना व्यक्ति के आंतरिक विकास और समाज के कल्याण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब हम बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की सेवा करते हैं, तो हम न केवल उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं, बल्कि अपने अंदर भी शांति और संतोष का अनुभव करते हैं।
भगवद गीता में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निष्काम कर्मयोग का उपदेश दिया है, जिसमें बिना फल की इच्छा के अपने कर्तव्य को निभाने की बात कही गई है। ऐसा करने से व्यक्ति अहंकार, ईर्ष्या, और लालच जैसी नकारात्मक भावनाओं से मुक्त हो जाता है और अपने जीवन में संतुलन और सुकून प्राप्त करता है।
निष्काम कर्म हमें ये सिखाता है कि हमारा ध्यान केवल कर्म पर होना चाहिए, न कि उसके परिणाम पर। यह दृष्टिकोण हमें मानसिक शांति, धैर्य और आत्म-संतोष देता है, जिससे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना हम सहजता से कर पाते हैं।स्वार्थ रहित होना और निष्काम कर्म करना व्यक्ति के आंतरिक विकास और समाज के कल्याण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जब हम बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की सेवा करते हैं, तो हम न केवल उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं, बल्कि अपने अंदर भी शांति और संतोष का अनुभव करते हैं।
भगवद गीता में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को निष्काम कर्मयोग का उपदेश दिया है, जिसमें बिना फल की इच्छा के अपने कर्तव्य को निभाने की बात कही गई है। ऐसा करने से व्यक्ति अहंकार, ईर्ष्या, और लालच जैसी नकारात्मक भावनाओं से मुक्त हो जाता है और अपने जीवन में संतुलन और सुकून प्राप्त करता है।
निष्काम कर्म हमें ये सिखाता है कि हमारा ध्यान केवल कर्म पर होना चाहिए, न कि उसके परिणाम पर। यह दृष्टिकोण हमें मानसिक शांति, धैर्य और आत्म-संतोष देता है, जिससे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना हम सहजता से कर पाते हैं।