प्राचीन गुरु परम्परा भारतीय अध्यात्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह परम्परा गुरु-शिष्य संबंध पर आधारित है, जहाँ ज्ञान और आध्यात्मिक अनुभूति का संप्रेषण मौखिक रूप से और व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से होता था। यह परम्परा वेदों, उपनिषदों और पुराणों में गहराई से वर्णित है।
प्रमुख विशेषताएँ:
- गुरु का महत्व: गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान स्थान दिया गया है, जो सृष्टि, पालन और संहार के प्रतीक हैं। ‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः’ इस मंत्र में गुरु को सर्वोच्च ज्ञान का स्रोत माना गया है।
- ज्ञान का संप्रेषण: यह परम्परा मौखिक और व्यक्तिगत रूप से ज्ञान के हस्तांतरण पर आधारित थी। शिष्य गुरुकुलों में रहकर गुरु की सेवा और अध्ययन करते थे।
- दीक्षा और अनुशासन: शिष्य को दीक्षा देकर साधना पथ पर प्रवृत्त किया जाता था। उसे गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण और अनुशासन का पालन करना होता था।
- अद्वैत और अद्वैत विचारधारा: आदि शंकराचार्य जैसे गुरुओं ने अद्वैत वेदांत की शिक्षा दी, जबकि रामानुजाचार्य ने विशिष्ट अद्वैत की स्थापना की।
- गुरु परम्परा के उदाहरण:
वेद व्यास और शुकदेव: भागवत पुराण का ज्ञान।
संदिपनि मुनि और कृष्ण: महाभारतकालीन शिक्षा।
पतंजलि: योगसूत्रों के माध्यम से योग की शिक्षा।
आदि शंकराचार्य: अद्वैत वेदांत के प्रचारक।
- आधुनिक युग में गुरु परम्परा:
स्वामी विवेकानंद – रामकृष्ण परमहंस के शिष्य।
रामानंद – कबीर और रविदास के गुरु।
परमहंस योगानंद – क्रिया योग के प्रचारक।
सार:
गुरु परम्परा केवल शैक्षिक ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें आत्मज्ञान, साधना और मोक्ष का मार्गदर्शन भी शामिल था। यह परम्परा आज भी विभिन्न आश्रमों, मठों और आध्यात्मिक संस्थानों में जीवित है।प्राचीन गुरु परम्परा भारतीय अध्यात्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह परम्परा गुरु-शिष्य संबंध पर आधारित है, जहाँ ज्ञान और आध्यात्मिक अनुभूति का संप्रेषण मौखिक रूप से और व्यक्तिगत संपर्क के माध्यम से होता था। यह परम्परा वेदों, उपनिषदों और पुराणों में गहराई से वर्णित है।
प्रमुख विशेषताएँ:
1. गुरु का महत्व: गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान स्थान दिया गया है, जो सृष्टि, पालन और संहार के प्रतीक हैं। ‘गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः’ इस मंत्र में गुरु को सर्वोच्च ज्ञान का स्रोत माना गया है।
2. ज्ञान का संप्रेषण: यह परम्परा मौखिक और व्यक्तिगत रूप से ज्ञान के हस्तांतरण पर आधारित थी। शिष्य गुरुकुलों में रहकर गुरु की सेवा और अध्ययन करते थे।
3. दीक्षा और अनुशासन: शिष्य को दीक्षा देकर साधना पथ पर प्रवृत्त किया जाता था। उसे गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण और अनुशासन का पालन करना होता था।
4. अद्वैत और अद्वैत विचारधारा: आदि शंकराचार्य जैसे गुरुओं ने अद्वैत वेदांत की शिक्षा दी, जबकि रामानुजाचार्य ने विशिष्ट अद्वैत की स्थापना की।
5. गुरु परम्परा के उदाहरण:
वेद व्यास और शुकदेव: भागवत पुराण का ज्ञान।
संदिपनि मुनि और कृष्ण: महाभारतकालीन शिक्षा।
पतंजलि: योगसूत्रों के माध्यम से योग की शिक्षा।
आदि शंकराचार्य: अद्वैत वेदांत के प्रचारक।
6. आधुनिक युग में गुरु परम्परा:
स्वामी विवेकानंद – रामकृष्ण परमहंस के शिष्य।
रामानंद – कबीर और रविदास के गुरु।
परमहंस योगानंद – क्रिया योग के प्रचारक।
सार:
गुरु परम्परा केवल शैक्षिक ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें आत्मज्ञान, साधना और मोक्ष का मार्गदर्शन भी शामिल था। यह परम्परा आज भी विभिन्न आश्रमों, मठों और आध्यात्मिक संस्थानों में जीवित है।