जानता हूं मेरी सोच का नजरिया कुछ अलग ही होता है

क्योंकि मैं मेन मेड गॉड में विस्वास नही रखता पर मै जानता हूं परमात्मा एक ही है उसका प्रतिबिम्ब मैं अपने माता पिता शिक्षक और गुरु में देखता हूं इसका ये अर्थ नही की मैं ईश्वर को नही मानता या उसे नही जानता पर सोच अपनी अपनी है और मंजिल तो उसको जान कर उसको पाने की इसलिए मैं कर्म वही करता हु जो गीता और धर्म मे लिखे है उनही का पालन करता हु मैं जानता हूं जो गुरु ।माता पिता से ज्ञान मिलता है वही आगे बढ़ाने में सहायक होता इसीलिये मैं माता पिता की पूर्ण सेवा में लगा रहता हूं क्योंकि एक वही है जो ज्ञान अपने बच्चों को देते है उसमें ककी स्वार्थ की मिलावट हज होती निष्कामी निष्पक्ष ओर केवली वही मेरी नजर में है बाकी सभी स्वार्थ में शिष्य को पूर्ण ज्ञान नही दे अपने पुत्रों को देते है लालच में भेदभाव कर पैसे वालो को भाव देते है बहुत कम ऐसे संत होते है जो निष्पक्ष आध्यात्मिक फैसला करते है उनकी गिनती हजारो में एक कि होती है बाकी सभी अपने स्वार्थ में चांदी के चंद टुकड़ो के लालच में लगे रहते है

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