अनाहद नाद, अजपा जाप और शून्यता: आत्मिक साधना का परम चरण

अध्यात्म में अनाहद नाद और अजपा जाप साधना के उन्नत चरण हैं। जब साधक इन अवस्थाओं का अनुभव करता है, तो उसे शून्यता का अनुभव हो सकता है। यह शून्यता एक प्रकार की आंतरिक शांति, शुद्ध चेतना और आत्म-अनुभव का संकेत है, जहाँ कोई विचार, ध्वनि या इच्छा नहीं रहती।अनाहद नाद: यह एक ध्वनि होती है जिसे बाहरी इंद्रियों से नहीं सुना जा सकता, बल्कि यह आंतरिक ध्वनि होती है जो साधक के ध्यान के गहरे स्तर पर सुनाई देती है। यह ध्यान की एक ऐसी अवस्था है जहाँ साधक ध्वनियों के स्रोत से परे जाकर आंतरिक शांति का अनुभव करता है।अजपा जाप: यह वह अवस्था है जहाँ बिना किसी प्रयास के ही मंत्र का जाप स्वतः होने लगता है। साधक को इसके लिए अलग से प्रयास नहीं करना पड़ता, बल्कि यह प्रक्रिया सहज रूप में चलती रहती है।शून्यता में प्रवेश: अनाहद और अजपा जाप के अनुभव के बाद, साधक शून्यता की अवस्था में प्रवेश करता है। यह अवस्था बौद्ध धर्म के “शून्यता” के सिद्धांत से मेल खाती है, जहाँ “स्व” का कोई अस्तित्व नहीं रहता, बल्कि सब कुछ “शून्य” में विलीन हो जाता है। यह अवस्था ध्यान और आत्मानुभव का सर्वोच्च स्तर माना जाता है।यह शून्यता भयावह नहीं होती, बल्कि इसे पूर्णता, शांति, और आत्मिक मुक्तता के रूप में देखा जाता है। यह वही अवस्था है जहाँ साधक अपने असली स्वरूप को पहचानता है और समस्त सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है।

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