आज मन मे कुछ असंतोष था और मन भी खुश नही था तभी आईने ने कहा क्या सोच रहा है क्यों परेशान है मैंने कहा न जाने क्यों मन मे संतुष्टि नही है जो मैं कर रहा हु उससे मुझे तस्सली नही है तभी आईने में मुझे मेरे अक्ष नजर आया और लगा कि वह कुछ कह रहा है अक्ष पर कोई दूसरा प्रतिबिम्ब नही था आईने पर रोशनी कहि से आ रही थी उसमें अक्ष साफ नजर आ रहा था कहने लगा ऐसा कोई व्यक्ति आध्यात्मिक दुनिया मे नही है जो पूर्ण संतुस्ट हो कहि न कही कुछ न कुछ अपनो कमियों के लिए सोचता रहता है विकार रहित होने की कोशिश करता है काम क्रोध लोभ मोह अहंकार जलन घमण्ड ईर्ष्या ओर द्वेष का कुछ अंश इंसान के अंदर मन मे रहता है और उसे वह अपने अंदर से दूर कर स्वम् को विकार रहित बनाने के लिए कुछ श्रम करता है गुरु के बताए निर्देश पर चलता है अपनी कमियों को तलाश कर दूर करता है और जो भी करता है उससे संतुस्ट होने की कोशिश करता है ये आध्यात्मिक डगर इतनी लंबी है इस पर अगर एक बार चलना शुरू करदे तो अंत तक पहुचने के लिए गुरु कृपा अगर नही मिले तो कई जीवन गुजर जाते है और इंसान को मंजिल।नही मिलती ओर तुम चाहते हो कि इसी जन्म में ही रास्ता पूरा कट जाए इसके लिए मन ही मन सोचते हो और निष्काम कर्म करते हो पर मंजिल तक पहुचने के लिए जो कार्य कर रहे हो ये पूर्ण नही है अभी तुममे समर्पण की भावना है समर्पित हो निस्वार्थ बन है पर जब तक तुम्हारा आचरण संत स्तर का नही होगा यानी अपनी आत्मा पर पूर्ण नियंत्रण तब तक तुम्हे अपने मे कमियों के अहसास होगा और ध्यान समाधि एकाग्रता अजपा ओर अनाहद में को एक लक्ष्य मां इसी में रम जाना होगा इस संसार को भूल सिर्फ मुझमे जो मैं नजर आ रहा हु यानी अपने बजूद को मुझमे समा देना होगा जिस रोज ये होगा तुम्हे सकूँ मिलने लगेगा और मैं भी तुम्हारे साथ खड़ा मिलूंगा नमन