शिष्य के कर्तव्य: श्रद्धा, समर्पण और आध्यात्मिक प्रगति की दिशा

शिष्य के कर्तव्य

  1. श्रद्धा और समर्पण

शिष्य को गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखना चाहिए। गुरु की शिक्षाओं को स्वीकार करना और उनका पालन करना उसका प्राथमिक कर्तव्य है।

  1. सत्संग में नियमितता

शिष्य को सत्संग में नियमित रूप से भाग लेना चाहिए और अपने मन को पवित्र रखने का प्रयास करना चाहिए।

  1. गुरु की आज्ञा का पालन

गुरु की आज्ञा को श्रद्धा और निष्ठा के साथ पालन करना शिष्य का कर्तव्य है।

  1. साधना और आत्म-अनुशासन

शिष्य को नियमित साधना (ध्यान, प्रार्थना, भजन) करनी चाहिए और आत्म-अनुशासन में रहना चाहिए।

  1. अहंकार का त्याग

शिष्य को अहंकार, ईर्ष्या, और अन्य नकारात्मक भावनाओं का त्याग करना चाहिए और विनम्रता अपनानी चाहिए।

  1. प्रश्न पूछना और सीखना

शिष्य को गुरु से अपनी शंकाओं को दूर करने के लिए विनम्रतापूर्वक प्रश्न पूछने चाहिए और नई चीजें सीखने के लिए तत्पर रहना चाहिए।

  1. धैर्य और समर्पण बनाए रखना

शिष्य को अपनी आध्यात्मिक यात्रा में धैर्य रखना चाहिए। प्रगति में समय लग सकता है, लेकिन विश्वास और समर्पण बनाए रखना आवश्यक है।

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