पतंजलि ने योग को आठ अंगों में विभाजित किया है, जिसे “अष्टांग योग” कहा जाता है।

यह मार्ग ईश्वर प्राप्ति के लिए एक व्यवस्थित प्रक्रिया है। आइए इसे समझते हैं:

  1. यम (नियम और संयम)

समाज और दूसरों के प्रति सही व्यवहार।

पाँच यम: अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (संयम), अपरिग्रह (अधिक संग्रह न करना)।

ये गुण व्यक्ति को अहंकार और माया से मुक्त करते हैं।

  1. नियम (आत्म-अनुशासन)

स्वयं के प्रति अनुशासन।

पाँच नियम: शौच (शुद्धता), संतोष (संतुष्टि), तप (आत्म-अनुशासन), स्वाध्याय (आध्यात्मिक अध्ययन), ईश्वर प्राणिधान (ईश्वर में समर्पण)।

ईश्वर प्राणिधान का अभ्यास व्यक्ति को परमात्मा से जोड़ने में सहायक होता है।

  1. आसन (शारीरिक स्थिरता)

शरीर को स्थिर और मजबूत बनाना।

ध्यान के लिए आवश्यक है कि शरीर स्थिर और आरामदायक हो।

  1. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण)

प्राण (जीवन ऊर्जा) का संतुलन।

मन और शरीर के बीच के संबंध को नियंत्रित करने का माध्यम।

श्वास को नियंत्रित करके मन को स्थिर किया जाता है।

  1. प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण)

इंद्रियों को बाहरी वस्तुओं से हटाकर भीतर की ओर केंद्रित करना।

यह साधक को संसार की माया और विकर्षणों से मुक्त करता है।

  1. धारणा (एकाग्रता)

मन को एक बिंदु पर केंद्रित करना।

यह अभ्यास ध्यान की ओर ले जाता है।

  1. ध्यान (मेडिटेशन)

मन को शांत और स्थिर करके आत्मा पर केंद्रित करना।

ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने भीतर ईश्वर की अनुभूति करता है।

  1. समाधि (पूर्ण एकता)

समाधि योग का अंतिम और सर्वोच्च चरण है।

इसमें आत्मा और परमात्मा के बीच कोई भेद नहीं रहता। साधक ईश्वर से एकाकार हो जाता है।

यह अवस्था मोक्ष या कैवल्य कहलाती है।

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