- सेवा का अर्थ:
सेवा का अर्थ केवल बाहरी कर्तव्यों को निभाना नहीं है, बल्कि यह आत्मसमर्पण, निष्ठा, और समर्पण का प्रतीक है। जब शिष्य खुद को गुरु के चरणों में समर्पित करता है, तो वह अपनी इच्छाओं और अहंकार को त्याग देता है।
- सेवा के प्रकार:
तन से सेवा: गुरु के निर्देशों का पालन करना, उनके कार्यों में सहयोग देना और हर प्रकार की शारीरिक सहायता प्रदान करना।
मन से सेवा: गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखना, उनके उपदेशों को आत्मसात करना, और उनके मार्गदर्शन पर ध्यान केंद्रित करना।
धन से सेवा: अपनी सामर्थ्य अनुसार गुरु के कार्यों और समाज के कल्याण के लिए योगदान देना।
धर्म से सेवा: गुरु की शिक्षाओं के अनुसार अपने जीवन को धर्ममय बनाना और सत्य, अहिंसा, और न्याय के मार्ग पर चलना।
- गुरु का मन जीतने के उपाय:
समर्पण: शिष्य को पूर्ण समर्पण भाव से गुरु की सेवा करनी चाहिए।
निष्ठा: गुरु के प्रति शुद्ध निष्ठा और ईमानदारी रखना अनिवार्य है।
सादगी और त्याग: अपने स्वार्थ और अहंकार का त्याग कर सादगी से जीवन जीना चाहिए।
गुरु की शिक्षाओं का पालन: केवल गुरु की बात सुनना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारना भी आवश्यक है।
- गद्दी का मालिक बनने का मार्ग:
गुरु के उत्तराधिकारी या गद्दी का मालिक बनने के लिए शिष्य को निम्नलिखित गुण अपनाने चाहिए:
सर्वश्रेष्ठ सेवा: अपनी सेवा से गुरु और समाज को प्रेरित करें।
समर्पण का प्रतीक बनें: गुरु की हर बात और इच्छा को अपने जीवन का आधार बनाएं।
दृढ़ता और संयम: हर स्थिति में अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करें।
गुरु की कृपा: गद्दी का मालिक बनने का निर्णय गुरु की कृपा और उनके आशीर्वाद पर निर्भर करता है।
निष्कर्ष:
शिष्य को सेवा में इतना समर्पित होना चाहिए कि वह अपने स्वार्थ को भुलाकर गुरु के उद्देश्य और कार्यों को अपने जीवन का ध्येय बना ले। यही सच्ची सेवा है, और इसी से गुरु का आशीर्वाद और स्नेह प्राप्त होता है।