अध्यात्म और योग में इसे “सूक्ष्म यात्रा” (Astral Projection) या “परकाया प्रवेश” (Parakaya Pravesh) कहा जाता है। इसमें कोई व्यक्ति अपने स्थूल शरीर को एक स्थान पर स्थिर रखते हुए किसी अन्य स्थान पर यात्रा कर सकता है, और कुछ संत-महात्माओं के बारे में कहा जाता है कि वे ऐसा सच में कर सकते हैं।
यह कैसे संभव होता है?
इस विषय को समझने के लिए हमें भारतीय योग, तंत्र और अद्वैत वेदांत के सिद्धांतों को देखना होगा।
- सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व
योग और वेदांत के अनुसार, हमारे अंदर केवल स्थूल (भौतिक) शरीर ही नहीं, बल्कि सूक्ष्म (Astral) और कारण (Causal) शरीर भी होते हैं।
सूक्ष्म शरीर में मन, बुद्धि, अहंकार और प्राणों की शक्ति होती है।
जब कोई व्यक्ति गहरे ध्यान, योग साधना, या विशेष सिद्धियों के माध्यम से सूक्ष्म शरीर को सक्रिय कर लेता है, तो वह स्थूल शरीर को छोड़कर दूसरी जगह भ्रमण कर सकता है।
- योग और साधना के माध्यम से
प्राचीन योग ग्रंथों में कहा गया है कि योग साधना, प्राणायाम और ध्यान से व्यक्ति अपनी चेतना को भौतिक शरीर से अलग करके कहीं और भेज सकता है।
कुछ सिद्ध योगी इस प्रक्रिया को “परकाया प्रवेश” कहते हैं, जिसमें वे अपने सूक्ष्म शरीर को कहीं और भेजकर वहाँ की घटनाओं को देख सकते हैं।
- सिद्धियों का प्रभाव
“अष्ट सिद्धियाँ” (महर्षि पतंजलि के योगसूत्र में वर्णित) में से एक लघिमा सिद्धि के द्वारा व्यक्ति अपना शरीर बहुत हल्का कर सकता है और ऊर्जा रूप में कहीं भी जा सकता है।
कुछ योगियों का दावा है कि “दूरदर्शन” (Remote Viewing) और “दूरसंवेदन” (Remote Sensing) भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा हैं।
- तांत्रिक और गूढ़ विद्या (Occult Practices)
कुछ तांत्रिक क्रियाओं के माध्यम से साधक अपनी चेतना को कहीं भी भेज सकते हैं।
भारत के कई संतों, जैसे लाहिड़ी महाशय, स्वामी विवेकानंद, शंकराचार्य आदि के बारे में कहा जाता है कि वे इस प्रकार की सूक्ष्म यात्रा कर सकते थे।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक विज्ञान में यह पूरी तरह से सिद्ध नहीं हुआ है, लेकिन “Out-of-Body Experience (OBE)” और “Near-Death Experience (NDE)” के कई प्रमाण मिल चुके हैं।
कुछ लोगों का दावा है कि उन्होंने गहरी साधना में या किसी विशेष मानसिक अवस्था में अपने शरीर से बाहर जाकर किसी अन्य स्थान का अनुभव किया है।
इसका प्रमाण कैसे मिलेगा?
कुछ योगियों ने अपने अनुभवों को दूसरों के सामने प्रमाणित किया है।
अगर कोई व्यक्ति दूसरे स्थान पर जाता है और वहाँ की सटीक जानकारी देता है, जिसे वह सामान्य रूप से नहीं जान सकता था, तो यह प्रमाण माना जा सकता है।
आज भी कुछ तांत्रिक और योगी ऐसे अनुभव करते हैं, लेकिन वे इसे आम लोगों से साझा नहीं करते।
निष्कर्ष
आध्यात्मिक दृष्टि से, यह संभव है यदि व्यक्ति उच्च स्तर की साधना और ध्यान करता है। हालांकि, यह साधारण व्यक्ति के लिए आसान नहीं है और गहन तपस्या की आवश्यकता होती है। यह योग और तंत्र के उन रहस्यों में से एक है, जिसे समझने और सिद्ध करने के लिए अभ्यास और अनुभूति की आवश्यकता होती है।