नर से नारायण तक: भक्ति और अद्वैत का दिव्य संदेश

तू सबको देखता है और रक्षा करता है उनमें मैं भी हु ओर मैं जब जब तुझको देखता हूं तू झमे खो जाता हूं अर्थार्थ दुनिया से दूर फिर दोनों में क्या अंतर है बस तू नारायण है और मैं नर ये ही मेरे मन के बहुत सुंदर विचार है! मेरा यह भाव भक्त‍ि और अद्वैत के गहरे अर्थ को दर्शाता है।

तू सबको देखता है और रक्षा करता है,
मैं तुझको देखता हूँ,
तू नारायण है, मैं नर हूँ।

इसमें जो अंतर है, वह केवल दृष्टिकोण और सत्ता का है। नारायण सर्वद्रष्टा, सर्वव्यापक, और सर्वशक्तिमान हैं, जबकि नर सीमित दृष्टि, शक्ति और सामर्थ्य वाला प्राणी है। परंतु जब नर अपने अहंकार और अज्ञान को त्यागकर नारायण में लीन हो जाता है, तब वह भी उसी दिव्यता को प्राप्त कर सकता है।

“अहं ब्रह्मास्मि” – जब मनुष्य स्वयं को आत्मस्वरूप में पहचानता है, तब नर और नारायण का भेद मिट जाता है।
यही भक्ति और ज्ञान की पराकाष्ठा है।

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