अनाहद नाद: आत्मिक जागरण की दिव्य ध्वनि

अनाहद नाद (आकाशीय ध्वनि) का अनुभव और उत्पत्ति

अनाहद नाद वह सूक्ष्म ध्वनि है जो आंतरिक साधना के एक उच्च स्तर पर अनुभव होती है। इसे सुनने के लिए व्यक्ति को गहन ध्यान और आध्यात्मिक प्रगति की आवश्यकता होती है। यह ध्वनि किसी भौतिक माध्यम (जैसे वायु या यंत्र) से उत्पन्न नहीं होती, इसलिए इसे “अनाहत” (जो बिना किसी आघात के हो) कहा जाता है।
जिसे सक्षम गुरु द्वारा शिष्य को बैत करते हुवे गुरु दीक्षा के माध्यम से हृदय में अपनी ऊर्जा को केन्द्रत कर देता है और हृदय के पास मरीब एक अंगुल पहले पसलिये ओर हृदय के बीच के स्थान पर कम्पन्न शुरू शुरू में बजती हुई महसूस होती है जो खुले कानो से स्पस्ट सुनाई देती है इसके बाद सीने की बाई तरफ फिर दाई तरफ ओर उसके बाद कंठ के माध्यम से मस्तिष्क के चारो तरफ हूत सूंदर तरीके से धक धक की आवाज मस्तिष्क के चारो तरफ ओर पूर्ण शरीर मे सहस्त्र चक्र के अलावा हर नह सुनाई देती है ज ब अभ्यास गुरु की कृपा से चरम सीमा पर पहुच जाता है और गुरुदेव को लगता है विकार रहित हो गया और मोह माया से दूर निष्कामी केवली वीतरागी बन गया है तब उसका सहस्त्र चक्र गुरु जाग्रत कर देते है और सिर की चोटी की जगह धक धक आत्मा की आसान स्थूल शरीर को महसूस होती है और म्रत्यु के समय आत्मा सूक्ष्म शरीर के साथ इस स्थान से निकल कर देवलोक होती हुई आंतरिक्ष में पहुच जाती है जिसे हमने स्वर्ग कहा हैवही अनंत काल तक विश्राम करती है और स्थूल जगत के लोगोंकी सहायता करती है जन्म मरण से मुक्त आत्मा उस लोक।में उच्च स्तर की आत्माओं के साथ रहती है ये मेरी सोच अहसास ओर अनुभव है अगर गलत लगे तो मुझे माफ़ करदे ओर इस धृष्टता के लिए क्षमा


कैसे पता लगे कि शिष्य में अनाहद नाद उत्पन्न हो गया है?

  1. आंतरिक ध्वनियाँ सुनाई देना ओम या सोहम धक धक के रूप में

जब शिष्य गुरु की मेहेर ओर अपने समपर्ण से ध्यान की उच्च अवस्था समाधि की चरम गहराई तक पहुँच जाता है, तो उसे अनाहद नाद सुनाई देने लगता है।

प्रारंभ में यह हल्की ध्वनियों के रूप में होता है, फिर स्पष्ट और निरंतर हो जाता है।

  1. आत्मिक शांति और स्थिरता

ध्यान के दौरान मन एकदम शांत हो जाता है और किसी बाहरी ध्वनि का प्रभाव नहीं पड़ता।या हम यू मॉने ज। समाधि की चरम अवस्था मे पहुच जाता है तो स्थूल शरीर सूक्ष्म शरीर के साथ एकाग्र हो सुन्न अवस्था मे पहुच कर अपने अस्तित्व को भूल सूक्ष्म शरीर मे लय हो जाता है अतः ऐसे समय उसे भौतिक दुनिया और भौतिक शरीर का आभास नही होता कि भोटी जगत में क्या ही रह है

साधक को अत्यधिक आनंद और शांति का अनुभव होता है।

  1. आध्यात्मिक ऊर्जा का बढ़ना

शरीर में कंपन या ऊर्जा का संचार महसूस होता है।

मस्तिष्क के मध्य में हल्की रोशनी या झिलमिलाहट दिख सकती है।जिसमे बैंगनी रंग का आरक्ष के छल्ले या गुब्बारे उसमे से निकलते दूर आंतरिक्ष में जाते दिखाई देते गया और बैंगनि रंग उसमें समता हुवा भी अनुभव होता है

  1. ध्यान में सहजता
    ज गुरु कि पुर्न कृपा होतिन्ह ओर गुरु का म उसके आरती प्रेम से भरा आंदितित होता है तो वो अपनी कृपा दिल खोल के शिष्य को दे देता है इससे शिष्य पुरण होने लगत हैअब उसे
    साधना करते समय अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता, ध्यान स्वतः लगने लगता है।
    तथा भौतिक दुनिया का उसपे कोई असर नहिबहोत ओर न ही
    बाहरी ध्वनियों से ध्यान भंग होता।
  2. सुप्त शक्तियों का जागरण

अनाहद नाद के अनुभव से कुंडलिनी शक्ति जागृत हो सकती है।

साधक में दिव्य ज्ञान और अंतःप्रेरणा विकसित होती है।


अनाहद नाद कैसे उत्पन्न होती है?

अनाहद नाद सुनने के लिए व्यक्ति को निम्नलिखित साधनाएँ करनी होती हैं:

  1. सच्चे गुरु की कृपा

गुरु के मार्गदर्शन के बिना यह अनुभव कठिन होता है।

गुरु की दीक्षा और सही साधना विधि ही अनाहद नाद की अनुभूति कराती है।

  1. नियमित ध्यान और जप

प्रतिदिन ध्यान (ध्यानयोग, राजयोग, कुंडलिनी ध्यान) करना आवश्यक है।

“ओम सोहम ” या गुरु मंत्र का जप करने से यह जागृत होता

. एकाग्रता और अंतर्मुखता

मन को बाहरी इच्छाओं और विकारों से मुक्त करना होता है।

जब मन पूरी तरह अंतर्मुखी होता है, तभी अनाहद नाद सुनाई देने लगता है। सात्विक जीवन और संयम।सात्विक आहार, ब्रह्मचर्य, और आत्मसंयम का पालन करने से ध्यान गहरा होता है।

शुद्ध और सरल जीवनशैली गुरु के प्रति आदर व समर्पण और समर्पित जीवन अपनाने से अनाहद नाद को सुनना आसान होता है।


अनाहद नाद के विभिन्न स्तर

अनाहद नाद का अनुभव अलग-अलग स्तरों पर होता है:

  1. मूल ध्वनि (प्रथम अवस्था) – धीमी धक धक की आवाज जो लाहचन में नही आती है कि क्या आवाज आ रही है इसलिए हम उसे झींगुर जैसी आवाज़।समझते है
  2. मध्यम ध्वनि (द्वितीय अवस्था) – जल प्रवाह जैसी ध्वनियाँ।
  3. तीव्र ध्वनि (तृतीय अवस्था) – अनहद ओंकार, जैसी आवाज
  4. परम ध्वनि (चतुर्थ अवस्था) – यह ध्वनि इतनी सूक्ष्म होती है कि केवल अनुभवी साधक ही इसे धक धक जैसे प्लस को हाथ लग के सुनते है जैसी हम सुन सकते हैं।क्योकि म्रत्यु के समय ये आवाज आना शरीर से बंद ही जाती है और ये आवाज आत्मा के रूप में 9 छिद्रों में से किसी से निकल ब्रह्मण्ड मै सूक्ष्म शरीर के साथ चली जाती है यहां हृदय से उतपन। धड़कन की आवाज कुछ भिन्न व गति अलग होती है

अनाहद नाद सुनने के लाभ

  1. अहंकार का नाश – साधक अहंकार से मुक्त होकर आत्मज्ञान प्राप्त करता है।
  2. परमानंद की स्थिति – इसे सुनकर मनुष्य शुद्ध आनंद में डूब जाता है।
  3. आध्यात्मिक उत्थान – साधक का चित्त उच्च स्तर की चेतना में प्रवेश कर जाता है।
  4. मृत्यु का भय समाप्त – साधक मृत्यु से नहीं डरता क्योंकि वह आत्मा के सत्य को पहचान लेता है।

निष्कर्ष

अनाहद नाद एक दिव्य ध्वनि है जो गहन ध्यान, गुरु कृपा और साधना से उत्पन्न होती है। यह अनुभव तब होता है जब मन पूरी तरह से शांत और एकाग्र हो जाता है। जब कोई साधक इस स्थिति में पहुँचता है, तो वह अनाहद ध्वनि को सुनने लगता है, जिससे उसे आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है।

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