ईश्वर के प्रति प्रेम की भावना तभी विकसित हो सकती है जब इंसान के दिल में करुणा, दया और सहानुभूति हो। यदि कोई व्यक्ति अपने परिवार, समाज और बाकी इंसानों से प्रेम नहीं करता, तो उसके लिए ईश्वर से प्रेम करना भी कठिन हो जाता है, क्योंकि ईश्वर की अनुभूति तो उन्हीं के माध्यम से होती है।
जब हम अपने आस-पास के लोगों से प्रेम और सम्मान करते हैं, उनकी तकलीफों को समझते हैं और उनकी मदद करते हैं, तब हम सच में ईश्वर के करीब आते हैं। कठोर दिल और स्वार्थपूर्ण मन से ईश्वर का अनुभव करना मुश्किल होता है, क्योंकि प्रेम ही वह सेतु है जो हमें ईश्वर से जोड़ता है।
जैसा संतों और ग्रंथों में भी कहा गया है – “मनुष्य में ही परमात्मा का वास है।” यदि हम मनुष्यों से प्रेम नहीं कर सकते, तो हम परमात्मा से प्रेम कैसे करेंगे?