- अष्टांग योग के माध्यम से:
यम (नैतिक अनुशासन), नियम (स्वअनुशासन), आसन (शारीरिक स्थिरता), प्राणायाम (श्वास नियंत्रण), प्रत्याहार (इंद्रियों का नियंत्रण), धारणा (एकाग्रता), ध्यान (ध्यान), और समाधि (पूर्ण तल्लीनता)।
समाधि की पूर्ण अवस्था में ही केवल्य की अनुभूति होती है।
- वैराग्य और विवेक द्वारा:
संसार से वैराग्य और सत्य-स्वरूप का विवेकपूर्ण ज्ञान ही आत्मा को केवल्य की ओर ले जाता है।
- ज्ञान योग और वेदांत में:
अद्वैत वेदांत में केवल्य को ‘ब्रह्म ज्ञान’ के रूप में देखा जाता है, जहाँ आत्मा और ब्रह्म का एकत्व अनुभव होता है – “अहं ब्रह्मास्मि” (मैं ब्रह्म हूँ)।
- कर्म और भक्ति:
निष्काम कर्म और भक्ति योग के द्वारा मन की शुद्धि और ईश्वर से एकात्मता प्राप्त करके भी केवल्य को पाया जा सकता है।