राधास्वामी मत में ‘दस द्वार’ आत्मा की आंतरिक यात्रा और चेतना के विभिन्न स्तरों का प्रतीक हैं। इन द्वारों को पार करके साधक उच्च आध्यात्मिक लोकों तक पहुँचता है। ये द्वार शरीर में स्थित सूक्ष्म चक्रों और चेतना के केंद्रों से जुड़े हैं।
दस द्वार (दस लोक)
- आधार चक्र (मूलाधार) – शरीर का सबसे निचला द्वार, जहां से कुंडलिनी ऊर्जा आरंभ होती है।
- स्वाधिष्ठान चक्र – यह काम और इच्छाओं से संबंधित है। इसे पार करने पर कामनाओं पर नियंत्रण पाया जाता है।
- मणिपूर चक्र – यह शक्ति और आत्म-संयम का केंद्र है।
- अनाहत चक्र (हृदय) – प्रेम और करुणा का केंद्र, जहाँ से भक्ति जाग्रत होती है।
- विशुद्धि चक्र (कंठ) – वाणी और संचार का केंद्र, जहाँ सत्य और पवित्रता का वास है।
- आज्ञा चक्र (भ्रूमध्य) – तीसरी आँख का स्थान, जहाँ ध्यान केंद्रित करके आत्मानुभूति होती है।
- सहस्रार चक्र (ब्राह्मण द्वार) – मस्तक के शीर्ष पर स्थित, जहाँ आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है।
- दशम द्वार (त्रिकुटी) – यह द्वार दो भौहों के बीच स्थित है, इसे ‘तीसरी आँख’ भी कहा जाता है। यहाँ से आंतरिक प्रकाश और ध्वनि का अनुभव होता है।
- सुनना (शब्द या नाद) – यहाँ आत्मा आंतरिक दिव्य ध्वनि (शब्द) को सुनती है, जो उसे उच्च लोकों तक ले जाती है।
- अमर लोक (सतलोक) – अंतिम और शाश्वत द्वार, जहाँ आत्मा अनंत शांति और आनंद का अनुभव करती है और परमात्मा से मिलन होता है।