भगवद गीता: “वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्” – आत्मा अविनाशी, नित्य, अजन्मा, और अपरिवर्तनीय है।
उपनिषद: “अहं ब्रह्मास्मि” – आत्मा ही ब्रह्म (परमात्मा) है।
बृहदारण्यक उपनिषद: “आत्मैवेदम सर्वम्” – सम्पूर्ण जगत आत्मा से ही उत्पन्न और उसमें विलीन होता है।