वैराग्य और मोक्ष का साधन:
शरीर की अस्थिरता, जरा (बुढ़ापा), रोग, और मृत्यु को देखकर साधक में वैराग्य उत्पन्न होता है।
यह वैराग्य उसे आत्मज्ञान और मोक्ष की दिशा में अग्रसर करता है।
साधना की दृष्टि से:
योगासन और प्राणायाम: शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाते हैं, जिससे ध्यान और साधना में स्थिरता आती है।
उपवास और संयम: इंद्रियों पर नियंत्रण पाकर मन को वश में किया जा सकता है।
सेवा और दान: शरीर के माध्यम से की गई निःस्वार्थ सेवा और दान साधक को अहंकार से मुक्त करते हैं।
निष्कर्ष:
स्थूल शरीर भले ही नश्वर और क्षणभंगुर हो, लेकिन इसका सही उपयोग आत्मा की उन्नति और मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जा सकता है।
यह साधना, सेवा, और आत्म-साक्षात्कार का मुख्य साधन है।
इसे स्वस्थ, पवित्र, और संयमित रखकर साधक अपनी आध्यात्मिक यात्रा को सफल बना सकता है।