- ध्यान (मेडिटेशन):
ध्यान द्वारा मन को माया और संसारिक भोगों से हटाकर आत्मा के शुद्ध स्वरूप की ओर मोड़ा जा सकता है।
- विवेक और वैराग्य:
नश्वर (अस्थायी) और शाश्वत (स्थायी) का विवेक (विचार) और संसारिक वस्तुओं से वैराग्य (वितरागता) मन को शुद्ध करता है।
- भक्ति और समर्पण:
ईश्वर के प्रति भक्ति और समर्पण मन को माया से मुक्त कर आत्मा के शुद्ध स्वरूप में स्थिर करता है।
- सत्संग और स्वाध्याय:
सत्संग (संतों का संग) और शास्त्रों के अध्ययन से मन की शुद्धि और आत्मज्ञान प्राप्त होता है।
- निष्काम कर्म:
फल की इच्छा त्यागकर कर्म करने से मन माया में लिप्त नहीं होता।
उपसंहार:
मन माया में लिप्त है, क्योंकि यह इंद्रियों, इच्छाओं, और अहंकार के प्रभाव में है।
आत्मा ईश्वर में लिप्त है, क्योंकि इसका स्वभाव शुद्ध, शाश्वत, और ब्रह्म स्वरूप है।
साधना, ध्यान, भक्ति, और ज्ञान के माध्यम से मन को माया से मुक्त कर आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्राप्त किया जा सकता है।