बहुत से योग सोचते है कि मैं क्या लिख रहा हु ओर क्यो क्योकि जो मजा जीने में वही आनंद मरने के बाद भी कोई सत्संगी अनुभव जीते जी करता है और सोचता है जीवन और मौत दोनो ईश्वर की देन है इसके ये क्या सोचना पर जीने का आनंद या है तो एक योग में चलने वाले को समाधि या ध्यान या गुरु के संग जब जीवन गुजार रहा हो और कोई पूछे जीवन ओर मौत में किसमे ज्यादा आनंद है तो मैं कहूंगा दोनो ही जीवन में वह आनद है एक जन्म में भौतिक सुख का आनंद इंसान लेता है दूसरे मौत के बाद वो उस जगत का आनन्दएटा है जहाँ उसे चिर काल तक एक ऐसी अवस्था मे आत्मा को जीवन गुजारना है जो उसे मुक्त अवस्था तक ले जाती है और 2 ही होती है एक स्वम् की कर दूसरी ईश्वर की परम।आत्मा उस जगह उसे अनन्त काल तक रहना है ओर सूक्ष्म और कारण महा कारण सुमष्म रूपी शरीर से ब्रह्मांड की विचित्र यात्रा करनी है जब हम ध्यान की शून्य अवस्था मे शून्य हो कर स्वम् को शून्य में स्थापित कर ईश्वर से एकाकार होता है तो मनुष्य जीवन को भूल उस अनंत अवस्था मे खो जाता है जहां न जीवन है न मौत से एक ही है वह आनंद नो व्यक्ति मौत को भी समाधिस्थ अवस्था मे ग्रहण करता है वही श्रेष्ठ है क्योंकि जब भी कली संत महात्मा योगी या अन्य आध्यात्मिक व्यक्ति म्रत्यु को वराह करता है तो उसे ज्ञात रहता कि अब मौत अंघुथे से ऊपर की ओर बढ़ रही है और मुझे चिर निंद्रा में अपने घर जाना है जहाँ मेरा असली घर है नमन

शून्यबहुत से योग सोचते है कि मैं क्या लिख रहा हु ओर क्यो क्योकि जो मजा जीने में वही आनंद मरने के बाद भी कोई सत्संगी अनुभव जीते जी करता है और सोचता है जीवन और मौत दोनो ईश्वर की देन है इसके ये क्या सोचना पर जीने का आनंद या है तो एक योग में चलने वाले को समाधि या ध्यान या गुरु के संग जब जीवन गुजार रहा हो और कोई पूछे जीवन ओर मौत में किसमे ज्यादा आनंद है तो मैं कहूंगा दोनो ही जीवन में वह आनद है एक जन्म में भौतिक सुख का आनंद इंसान लेता है दूसरे मौत के बाद वो उस जगत का आनन्दएटा है जहाँ उसे चिर काल तक एक ऐसी अवस्था मे आत्मा को जीवन गुजारना है जो उसे मुक्त अवस्था तक ले जाती है और 2 ही होती है एक स्वम् की कर दूसरी ईश्वर की परम।आत्मा उस जगह उसे अनन्त काल तक रहना है ओर सूक्ष्म और कारण महा कारण सुमष्म रूपी शरीर से ब्रह्मांड की विचित्र यात्रा करनी है जब हम ध्यान की शून्य अवस्था मे शून्य हो कर स्वम् को शून्य में स्थापित कर ईश्वर से एकाकार होता है तो मनुष्य जीवन को भूल उस अनंत अवस्था मे खो जाता है जहां न जीवन है न मौत से एक ही है वह आनंद नो व्यक्ति मौत को भी समाधिस्थ अवस्था मे ग्रहण करता है वही श्रेष्ठ है क्योंकि जब भी कली संत महात्मा योगी या अन्य आध्यात्मिक व्यक्ति म्रत्यु को वराह करता है तो उसे ज्ञात रहता कि अब मौत अंघुथे से ऊपर की ओर बढ़ रही है और मुझे चिर निंद्रा में अपने घर जाना है जहाँ मेरा असली घर है नमन





















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