इंसान सुख व दुख पाता है अपने किये कर्मो के फल से हे मानव जब तू आ गया है इस संसार मे तो कर्मो का भुगतान होना ही है और जिनका पिछले जन्मों से कर्ज लिया है या दिया है वह लेन देंन मॉनव के इसी जन्म में भुगतान करना होता है कयोंकि कोई भि पुर्न आध्यात्मिक गुरु यह नही चाहेगा कि वो शिष्य के कर्जो को अगले जन्मो के लिए छोड़ के ले जाये और उसे।पूर्ण करने के लिए बार बार जन्म ले और निष्काम करते हुवे वो अपने लोक को लौट जाए कई बार गुरु को।जन्म।ले कर शिष्य के कर्मो का भुगतान करना होता है मैं जानता हूं कि इससे गुरु के पद को कोई आंच नही आती फिर भी गुरु हर बार सांसारिक बंधनो में बंधना नही चाहता इसलिए वो इसी जन्म में अपनी नाव से समुन्दर के किनारे से लेकर भंवर तक।मे नाव ले जाता है ओर वो हद पार करवा देता है जिसे उसे इसी जन्म में पूरा करवा कर उसे पूर्ण सक्षम बना कर ईश्वर के समक्ष पेश कर देता है फिर भी कोई कमी रहती है तो वो सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर से शिष्य की आत्मा को अपनी बात सूक्ष्म रूप से ध्यान समाधि में बता देता है और शिष्य को पूर्ण कर अपने साथ ले जाता है