देवता और ईश्वर में क्या भेद है?
धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से, ईश्वर और देवता के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है। हालांकि, सामान्य रूप से लोग दोनों को एक ही समझ लेते हैं, लेकिन शास्त्रों में इनकी परिभाषा भिन्न है।
- ईश्वर (ब्रह्म, परमात्मा)
ईश्वर एक अव्यक्त, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी और सर्वज्ञ शक्ति है।
वह अनादि, अनंत, अजन्मा और स्वयंभू है।
ईश्वर को किसी रूप, आकार या विशेषता में बांधा नहीं जा सकता।
वह सृष्टि का कर्ता, पालनकर्ता और संहारक है।
उसे “परब्रह्म” या “सच्चिदानंद” भी कहा जाता है (सत् – सत्य, चित् – चेतना, आनंद – परमानंद)।
उदाहरण: वेदों में ब्रह्म (परमात्मा) को निर्गुण और निराकार बताया गया है, जिसे सीधे समझना कठिन होता है।
- देवता (देव, देवी)
देवता ईश्वर के विभिन्न रूपों या उसकी शक्तियों के प्रतिनिधि होते हैं।
वे विशेष गुणों और शक्तियों से संपन्न होते हैं, जो संसार के संचालन में सहायक होते हैं।
वे सगुण और साकार होते हैं, जिनकी मूर्ति या चित्र के रूप में पूजा की जा सकती है।
देवता भी ब्रह्म (परमात्मा) की ही विभिन्न शक्तियों के प्रतीक होते हैं, लेकिन वे स्वयं ईश्वर नहीं होते।
वे किसी विशेष कार्य से जुड़े होते हैं, जैसे:
ब्रह्मा – सृष्टि के रचयिता
विष्णु – पालनकर्ता
महेश (शिव) – संहारकर्ता
इंद्र – देवताओं के राजा और वर्षा के देवता
सूर्य – प्रकाश और ऊर्जा के देवता
सरस्वती – ज्ञान की देवी
लक्ष्मी – समृद्धि की देवी
मुख्य अंतर (Devata vs Ishwar)
निष्कर्ष
ईश्वर (परमात्मा) एक ही है, जो सभी का स्रोत है। देवता उसी ईश्वर के विभिन्न कार्यों के लिए अलग-अलग रूप हैं, जिनकी विशेष शक्तियाँ होती हैं। भक्तगण देवताओं की पूजा इसलिए करते हैं क्योंकि वे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सहायता करते हैं, लेकिन सभी देवताओं की अंतिम सत्ता ईश्वर ही है। इसी कारण वेदों में कहा गया है:
“एको ब्रह्म, द्वितीयो नास्ति”
(अर्थ: केवल एक ही ब्रह्म है, दूसरा कोई नहीं)।