आध्यात्मिक दुनिया मे जो भी व्यक्ति जन्म लेता है वो चाहे भौतिक दुनिया या आध्यात्मिक दुनिया सभी को अपने कर्मो के अनुसार इस दुनिया मे चयनित घर मे जन्म ले कर अपना जन्म से म्रत्यु तक का कर्मो के अनुसार रोल निभाना पड़ता है मेरे पिता के कुल 10 पुत्र पुत्रियों ने जन्म।लिया जिनमे से तीन पैदा होने के कुछ समय बाद इस संसार से विदा हो गए और हम 7 बहिन भाई परिवार में माता पिता की झोली में पलते रहे जिनमे 5 भाई व 2 बहिने चुकी दादी बहुत उच्च कोटि की हनुमान भक्त और संत थी उनका प्रभाव पिताजी पर पूर्ण रूप से आया और मेरी माँ जो कि संत रूप में जन्म।लिया था शुरु से ही संत के रूप में जीवन निर्वाह किया और पिताजी चुकी भक्ति की परिकाष्ठा व गुरु भक्त थे मा का विवाह होकर आना ये सब आध्यात्मिक संस्कार के कारण हो वाया इर हम 7 भाई बहिन भी आध्यात्मिक संस्कार लिए इस घर मे आये और बचपन से लेकर आज तक माता पिता व गुरु के आशीर्वाद ओर उनके द्वारा मार्ग जो वताया गया उसी पर चलने लगे पिताजीव मा का प्रभाव व संस्कार और नैतिकता का ज्यादा असर आध्यात्मिक मेरे बहिन पुष्पलता कमला बहिन भाई कृष्ण कुमार राजेन्द्र कुमार सतीश कुमार और अशोक कुमार पर ज्ञान भक्ति और ध्यान साधना का ज्यादा रहा और वो अपनी आध्यात्मिक दुनिया मे हमेशा सिमित अपनी मर्यादा में रही है हम सब को गुरु देव के अलावा कुछ भी नही चाहिए था और आध्यात्मिक दुनिया जो संस्कारो से मिली वह आध्यात्मिक होने के कारण एक उच्च अवस्था तक सीमित होने के कारण लितजी मा को आध्यात्मिक उच्च पद तो मिल गया पर सत्संग में आने वाली की संख्या को नही बढ़ाया जो आया उस पर ध्यान दिया और उसकी किस्मत के अनुसार ज्ञान शक्ति ऊर्जा दी पर सत्संग को एक विशाल रूप नही दे पाए चुकी मैं कुछ अलग से विचार रखता था ज्योतिष और संतो के आशीर्वाद से मुझे बहुत कुछ मिला था जो मेरे ये बहुत था इसी शक्ति से मैं लोगो को आकर्षित कर अपने सत्संग में आने के लिए प्रेरित करता था लोग प्रेरित हो कर आते थे जब पिताजी मुझसे पूछते थे कि तुम्हारा क्या उद्देश्य है तो मैं कहता था पिताजी मैं तो सिर्फ एक मोहरा हु आपके दरबार का जो कटपुतली मि तरह नाच कर लोगो को अपनी ओर आकर्षित करता हु जब आकर्षित हो वो मेरे दीवाने हो जाते है और उनमें आपसे मिलने की गहरी ललक होती है तो आपके पास आगे की शिक्षा के लिए ले आता हूं और ये ही कार्य मेरा धेय्य है इसी को।पूरा करना अपना कर्तेव्य मानता हूं इसीलिए 2016 में सोहम ध्यान योग केंद्र का निर्माण कर मातृ पितृ स्मृति का निर्माण किया गया जहा आज हजारो लोग माता पिता के संत रूप में दर्शन करने आते है और इस स्थान पर वो आध्यात्मिक शक्ति का स्वम् में अनुभव करते है जो उन्हें अन्य स्थान पर आज तक नही मिली पिताजी ने अपने जीवन काल मे 21 व्यक्तियों को आध्यात्मिक तवज्जुह दी इनमे से एक श्री भारतभूषण जी संत की अवस्था मे है कुछ पूर्णता की ओर बढ़ रहे है और कुछ सफर में आगे चल रहे है उसी तरह बड़े भाई साहब के कुल 5 सदस्य काबिल हुवे जो आगे बढ़ रहे है और तरक्की कर रहे है छोटे भाई राजेन्द्र जी इस आध्यात्मिकता को अपने लेखन से किताबो में ज्ञान लिख इस परंपरा को आगे ले गए और छोटे भाई सतीश जी सेठी कॉलोनी में सत्संग कराने का जिम्मा निभा रहे है नमन