राधा और मीरा, दोनों भारतीय भक्ति परंपरा की अद्भुत प्रतीक हैं, और दोनों के प्रेम और भक्ति के बीच का अंतर समझना एक आध्यात्मिक यात्रा जैसा है।
राधा का प्रेम: परिकाष्ठा या भक्ति?
राधा का प्रेम परम प्रेम की पराकाष्ठा है — वह ‘माधुर्य भक्ति’ (प्रेम-रूप भक्ति) की चरम अवस्था का प्रतीक है।
राधा ने कृष्ण को केवल प्रेमी के रूप में नहीं, बल्कि पूर्ण रूप से ब्रह्म के रूप में स्वीकार किया।
उनका प्रेम निजता और समर्पण से भरा था — इतना गहन कि वह स्वयं कृष्ण से भी ऊपर पूजी जाती हैं।
तो राधा में प्रेम और भक्ति दोनों थे, पर प्रेम के माध्यम से ही वह भक्ति को जीती थीं। उनका प्रेम सांसारिक नहीं था, वह अलौकिक था।
मीरा की दीवानगी: प्रेम या भक्ति?
मीरा की दीवानगी भले प्रेम की तरह प्रतीत होती हो, लेकिन वह शुद्ध, निर्गुण भक्ति का उदाहरण है।
वह कृष्ण को अपना स्वामी, प्रेमी, और भगवान सब कुछ मानती थीं।
मीरा की भक्ति सगुण (प्रभु को साकार रूप में देखना) के माध्यम से थी, पर वह इतनी आत्म-विसर्जित थी कि वह भक्ति ही प्रेम बन गई।
मीरा की दीवानगी में भक्ति इतना प्रबल हो गया कि वह प्रेम की तरह दिखने लगा।